वैदिक विज्ञान
वेद और विज्ञान
* सभी मित्रों के लिए एक महत्वपूर्ण लेख ! जो वेदों के ज्ञान - विज्ञान बताते फिरते है उनके मुह पर एक तमाचा साबित होगा अर्थात विज्ञान के नाम पर गंदगी फैलाते नजर आते है और हैरत की बात तो ये है कि मूर्खो को तनिक भर भी लज्जा नही आती और कहते है , की ( NASA ) वेदों से पढ़ कर रिसर्च अर्थात खोज करता है जो कि एक बहुत बड़ा मिथ्था भाषण है जिसका कही से न तो सिर है ना ही पाव केवल स्वयं का ह्रदय प्रसन्न करते रहते है ।
* मजे की बात तो ये है ,की जब से वेदों की रचना की गई है ( 2500 - 3000 साल पूर्व ) उनके मानने वाले अर्थात वैदिक धर्मीयो को भी मुर्ख बनाया जा रहा है ।
बेचारे अंधकार में फसे है और मान बैठे है , की वास्तव में वेदों में ज्ञान - विज्ञान भरा हुआ है ।
* किंतु मनुष्य होने के नाते उनको ये भ्रम से बाहर निकालना मेरा कर्तव्य है , की वेदों में कोई ज्ञान विज्ञान नही केवल और केवल आप लोगो को मूर्ख बनाया जाता है।
वेद और ईश्वर
* वैदिक धर्म मे एक नया मत निकला है , जिसका जन्म आज से 130 साल कमोपेश पूर्व हुआ है , जिसके संथापक मूलशंकर तिवारी उर्फ दयानंद सरस्वती जी थे । उन्होंने ने देखा कि वेदों में केवल गंदगी भरी हुई है तो कुछ किया जाए जिससे लोगो को मूर्ख बनाया जाए जिससे वेदों का ज्ञान विज्ञान भी दिखा सके ।
* तो उन्होंने सोचा कि वेदों को नए सिरे से लिखा जाए
जिसमे कालांतर में जितना विज्ञान ने तरक्की की है सब को वेदों में लिख कर बता दिया जाए कि वेदों में पहले से ये सब है जिसका उदहारण के तौर पर विमान , तोप ,बंदूक आदि आदि सब वेदों में लिख दिया और बड़ी चतुराई से ज्ञान विज्ञान को वेदों में डालने में भी कामयाब रहे , परंतु आज 21 सदी में वेद फिर आधुनिक विज्ञान के सामने नाकाम नजर आता है ।
* बरहाल हमारा विषय यह नही की , किसने क्या भाष्य किया किसने क्या ? किंतु आज कालांतर में वैदिक धर्म के युवाओं के मस्तिष्क में डाल दिया है , की वेदों के सम्पूर्ण भाष्य में मिलावट है एक मात्र मुलशंकर उर्फ दयानंद सरस्वती को छोड़ कर पर अफ़सोस क्या करे युवा मंडली उन्हें तनिक भर का अंदाजा नही है कि वे स्वयं अपने पूर्वजों को मूर्ख और गलत साबित कर चुके है , की वे सब अति मूर्ख एवं पाखंडी पूर्वज थे , और एक बात भी फैलाई गई है , की शास्त्रों में मिलावट है ? और पुराणों को कल्पनी आदि आदि धर्म ग्रंथ में मिलावट है ।
* और रही मिलावट की किसने क्या मिलाया है ओर किसने क्या उसका सम्पूर्ण चिट्ठा - बिट्ठा खोल सकता हु की दयानंद सरस्वती ने वेदों के साथ क्या क्या किया है परंतु आज का विषय कुछ अलग है ।
क्या वेद ईश्वरीय ज्ञान है ?
* वेद तो स्वयं कहते है ? कि हम ईश्वरीय वाणी है परंतु
वेदों के मानने वाले वेदों के विरोध जाके कहते है कि ये ईश्वरीय ज्ञान है , ठीक पल भर के लिए मान लिया कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है पर ऐसा अपूर्ण ज्ञान वैदिक ईश्वर को यह नही पता कि मैंने किस वेद में क्या ज्ञान दिया है और दूसरे वेद में क्या अर्थात यजुर्वेद में कुछ और कहा और अर्थववेद में कुछ वाह क्या ज्ञान है।
* कमाल है , वैदिक ईश्वर के ज्ञान पर प्रशन चिन्ह
( ? ) लगता है इसका अभिप्राय : यह है , की वेद मंत्रों में विरोधाभास है , जिसको पढ कर सर चकरा जाता है।
* की किस मूर्ख ने यह सब लिख दिया है कहि कुछ कही कुछ वेदों का ज्ञान विज्ञान की पुस्तक तो नही अपितु कामसूत्र एव मनोरंजन की पुस्तक कह सकते है जिसको देख कर केवल हंसी आए ये कोइ बात हम हवा हवाई नही बल्कि वैदिक धर्म के मानने वाले बड़े बडे प्रचीन वेदाभाष्यकर्ता स्वयं कहते है ,की वेद अर्थहीन है । आइए जानते है ?
वेदों के अर्थ का अनर्थ !
* निरुक्तकार कहते है ,की वेदों के मंत्र विषय मे यास्क द्वारा उठाये गए एक और विवाद पर विचार करते है वेदों के मंत्रों के अर्थ के सम्बंध में बहुत प्राचीन समय से शकाये उठाई जाने लगी थी। उनके 2 पक्ष थे ?
- लोकायत - मत
- कर्मकाण्डी
1 . लोकायत मत : - के लोग तो मंत्र को इसलिए अर्थहीन मानते थे , की इनमें उल - जलूल बाते भरी पड़ी है , वेदों की कोई सत्ता नही इन्हें मानना व्यर्थ हैं ।
2 . कर्मकाण्डीयो : - का कहना था कि वेदों का कोई अर्थ नही किंतु उनका पाठ अनिवार्य है , पाठ करने में अर्थ का ध्यान नही रहता हम निष्ठा से पाठ करते है , क्योंकि यह हमारा धर्म है ।
* क्योंकि वेद अर्थहीन भले ही झाड़ फूंक करने के निर्रथक मंत्रो में ऐसा परिवर्तन किया की कार्यकारि शक्ति नष्ट हुई । क्या मिथ्था है , हंसी आती है ।
वेदमन्त्र में विरोधाभास
* वैदिक मंत्र इसलिए भी निरर्थक है , क्योंक की वे आपस मे ही विरोध करते है ।
उदाहरण ० कभी तो पृथ्वी केवल एक ही रुद्र है होने की बात करते है तो कही हजारों रुद्रों को ला बैठाते है
कभी इंद्र को जन्म से ही शत्रु हीन कहते है , कभी कुछ क्या खेल है ? यास्क फिर लौकिक प्रयोग के सामने सिर झुका देते है ।
* तो बड़े बड़े भाष्यकर्ताओ का मत है , की वेदों का कोई अर्थ ही नही और ये मूर्ख वेदों में ही विज्ञान की बाते करते है क्या मिथ्था से कम प्रतीत नही होता ।
वेद और आधुनिक विज्ञान
* मेरा काम वेदों के ऊपर प्रश्न चिन्ह लगाना नही बल्कि उन लोगो की बुद्धि का ताला खोलना है जो कि वेदों में ज्ञान विज्ञान की बाते करते नजर आते है कि वे भ्रम की जिंदगी व्यतीत कर रहे है । जो इनके पंडो ने बता रखा है । ये तो 100 % स्पष्ट है , की वेद न तो कोई ईश्वरीय ज्ञान , वाणी नही कोई ईश्वरीय ग्रन्थ ।
बल्कि कोई 2 पग पर चलने वाला हवस के पुजारी के लिखे हुए जिसने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसे कलंकित ग्रन्थ की रचना की , जिससे लोगो का आर्थिक , मानसिक एव शरीरिक शोषण किया जाए जिसका उदाहरण नियोग , मारकाट आदि आदि वेदों में भरा हुआ है ।
* आये देखते है ज्ञान विज्ञान के कुछ उद्धरण जो समझदारों के लिए इशारा काफी होगा ।
नोट : - सारे भाष्य दयानंद सरस्वती और आर्य समाजीयो के ही है ।
* यजुर्वेद का यह मंत्र कह रहा है , की सूर्य केवल अपनी ही परिधि में घूमता है अन्य किसी भी लोकांतकर के नही , इसमें भी गोल माल है ,ठीक है पल भर के लिए मान लेते है , की सत्य परंतु अर्थववेद क्या कह रहा है ?
* और यहाँ कह रहा है , सब लोको के चारो और घूमता है , ये है वैदिक ईश्वर का अधूरा ज्ञान इससे शिद्ध हुआ किया ये कोई ईश्वरीय ग्रन्थ नही बल्कि मानव रचित है ईश्वर के ज्ञान में कभी भी विरोधाभास नही होता केवल मानव के ज्ञान में ।
* कुछ और उद्धरण नीचे है जिससे और आपको स्पष्ट होगा मिथ्थाई ग्रन्थ वेदों के बारे में कही घूम रहा है , कही रोका हुआ , कही कुछ कही कुछ ।
* इसलिए कहा था कि ये पुस्तक मनोरंजन से भरी पढ़ी है यही वजह थी कि प्रचीन काल के लोग इससे व्यर्थ समझते थे और ये गधे इस में विज्ञान बताते है क्या मिथ्था है अगर ये सब जानने के बाद भी कोई ऐसा कहे वो महामूर्ख नही तो क्या होगा आप स्वयं ही बातए ।
धन्यवाद
2 comments
Click here for commentsBohut Khub Sir ��
Replybhot hard sahi krke aaryo ki kachchi kr rhe ho...!!!
Replylage rho
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