वैदिक साहित्य
निरुक्त का परिचय
* निरुक्त का अर्थ आसान शब्द में समझा जाये तो यह है कि कोई जिज्ञासु वेदार्थ जानने में इच्छुक हो वे निरुक्त का अध्ययन करके व्याकरण द्वारा वेदाभाष्य का अर्थ जानने में सामर्थ हो सकता है महर्षि यास्क ने वेदो के अर्थ को जानने के लिए निरुक्त एंवम निघण्टु के अधार पर वेदाभ्यास तथा जिज्ञासुओ के लिए के एक उपहार है ।
निरुक्तम अभ्यास
* निरुक्तम के नियम जिसके आधार पर वेदो का भाष्य किया जाता है या यह कहने में भूल न होतो ये वेदार्थो के प्राण है ।
- पूर्वजों द्वारा परंपरागत ग्रहण किया ज्ञान
- तर्क
- मन्न
* प्राचीन काल से संस्कृत भाषा के सर्व विद्धवान हुआ करते थे जिसके चलते वेदों का अर्थ जानने में कोई कठिनाई न थी परंतु समयानुसार भाषाओ में तथा दैनिक व्यवहार संस्कृत भाषाओं में प्रक्षेप होना शुरू हो चला वेदार्थ के अर्थों का अनर्थ होने लगा परंतु समय समय पर अनेको विद्वानों वेदार्थ के और लोगो का ध्यान केंद्रित किया और सत्य सत्य अर्थ मानवमात्र स्मरण कराया ।
* जिसमे सर्व प्रथम महर्षि सायणचार्य मुख्य भूमिका निभाई और वेदा भाष्यकर्ताओ में सर्वमान्य सायणचार्य
द्वारा किया सायण भाष्य अति प्रशंशनीय है । अधिक जानकारी के लिये यहाँ देखे 👉 वेदाभाष्य उसी प्रकार महर्षि उवट ,महाधिर आदि -आदि ने भी वेदाभाष्यकर्ता की भूमिका निभाई है , जो कि वैदिक संस्कृति एवंम मानवमात्र पर एक ऋण अथवा उपहार जिसके फलस्वरूप वेद पाठक को वेदार्थ समझने में आसानी तथा सरलता हुई।
* परंतु समय-समय पर दुर्भाग्यवर्ष राक्षस , पिशाच तथा नास्तिकों ने वेदाभाष्य का बेढ़ा उठाया जिसमे बड़ चढ़कर हिस्सा लेने वाला व्यक्ति मूल शंकर तिवारी उर्फ
( दयानंद सरस्वती ) वेदार्थ में मनघडंत वेदाभाष्य करके समोसा , कचोरी , जलेबी , इमारती , बंदूक , तोप , विमान आदि आदि डाल कर स्वतः वेदों का अथवा वैदिक धर्म का मजाक बनाया है । जिसके कुछ उदाहरण यहाँ देखे ,👉 प्रक्षेप
वेद कितने है ?
- ऋग्वेद = स्तृती विद्याया
- सामवेद = मोक्ष विद्याया
- यजुर्वेद = सत्संग विद्याया
- अथर्ववेद = ब्रह्म विद्याया
वेदाउत्पत्ति इतिहास
* कई विद्वानो के मतानुसार वेदाउत्पत्ति
मोहन -जो-दरो अपठित शिलालिपि
( सिंध 4500 ईसवी पूर्व ) तथा बोघाज - कोई हत्ताइत शिलालिपि ( तुर्की 1400 ईसवी पूर्व )
कोई लोग वेदों से पूर्व मानते है ।
* वेदों का काल 1300 ईसवी पूर्व ( मैक्समूलर )
2000 ईसवी पूर्व ( विन्तरनित्स )
4000 ईसवी पूर्व ( तिलक तथा जैकोबी )
2500 ईसवी पूर्व ( अविनाश चंद्र दास ) तक मानते
है ।
* गवेषको ने भाषा के आधार पर वैदिक और लौकिक संस्कृत का भेद देखकर वैदिक भाषा मे लिखे गए समस्त साहित्य को वैदिक नाम से अभिहित किया है ।
इस प्रकार वैदिक साहित्य को 4 खंडों में बाटते है ।
- सहिंता
- ब्राह्मण
- आरव्यक
- उपनिषद अलग अलग है ।
1 . संहिता : - सहिंता भाग में संग्रहमात्र है और ये सबसे अधिक प्रचीन है ।
2 . ब्राह्मण : - ब्राह्मण भाग मंत्रो का याज्ञीक उपयोग बतलाता है यह अधिकांश गद्य में है ।
3 . 4 आरव्यको और उपनिषदों : - दार्शनिक भवना
उद्भूत हुई है , इनमें ऋषियों में वैदिक ईश्वर , संसार आध्यात्मिक विचारों का गद्य वर्णन है ।
सहिंता
* संहिता भाग में 4 खंड है ।
- ऋग्वेद = स्तृती विद्याया
- सामवेद = मोक्ष विद्याया
- यजुर्वेद = सत्संग विद्याया
- अथर्ववेद = ब्रह्म विद्याया
अलग अलग है ।
* उस समय तक लेखन कला का अविष्कार न होने के कारण इन्हें काण्डस्थ ( मुखीख ) ही रखा गया था
ऐसा अनुमान है और विभिन्न कुलो ( परिवार ) में अलग अलग रूप में पाठ होने के कारण इन की कई शाखाए हो गई ।
* परंतु प्रत्येक शाखा के अपने - अपने ब्राह्मणादि निश्चित थे कालांतर में बहुत सी शाखए लुप्त
( घूम , नष्ट , खो - जाना ) हो गईं है , परंतु इनकी प्रत्येक शाखायें स्वतंत्रता रूप से वेद है ।
( घूम , नष्ट , खो - जाना ) हो गईं है , परंतु इनकी प्रत्येक शाखायें स्वतंत्रता रूप से वेद है ।
* पतंञ्जलि ने ऋग्वेद की 21 , सामवेद की 1000 यजुर्वेद की 101 और अथर्ववेद की 9 का उल्लेख किया है ।
ऋग्वेद
* ऋचाओ का संग्रह तथा समस्त वैदिक सहिंता में यह सबसे बड़ा है । इसकी केवल 1 शाकाल शाखा ही इस समय उपलब्ध है , अन्य अन्य सभी वेदों में इसके मंत्र संग्रहित है ।
* ऋग्वेद के विभाजन की 2 प्रणाली है ।
- अष्टक - अध्यया - वर्ग
- मण्डल -सूक्त -अनुवाक
ऋग्वेद की भूमिका
* ऋग्वेद के प्रथम तथा 10 मण्डल में अर्वाचीन है जिसे भाषा , देवता आदि आधार पर सिद्ध किया जाता हैं केवल 75 मंत्रो को छोड़कर सामवेद संहिता के सभी मंत्र ऋग्वेद से लिये गए है , जिनमे अधिकार 9 मण्डल
( सोम विषयक ) के है ।
* सामवेद 2 भाग में है ।
* जिनमे सभी मंत्र संगीत के योग्य है । साम - गान में 7 स्वरों का उपयोग होता है ।
* यजुर्वेद में 2 भेद है ।
शुक्ल यजुर्वेद : - यजुर्वेद में केवल मंत्रो का संग्रह है , विनियोग - वाक्यो का नही इसकी सहिंता वाजसनेयी सहिंता कहलाती है , इसमे 40 अध्य्या जिस की 2 प्रधान शाखायें -माध्यनिन्दन , उत्तर भारत अथवा दक्षिण भारत है ।
कृष्ण यजुर्वेद : - मंत्रो के साथ विनियोग - वाक्य भी है इसके 4 शाखाए है ।
* दोनों यजुर्वेद प्रायः गद्य में है , जो वैदिक सहिंता का प्रथम गद्य है ।
* अथर्ववेद में अभिचार मंत्र संग्रहित है , यह 20 काण्ड में विभक्त है , जिसके अंदर प्रपाठक , अनुवाक , सूक्त और मंत्र है सन्निविष्ट है जिसके 1200 मंत्र ऋग्वेद के लिए गए है ।
* यह वैदिक साहित्य का संक्षेप परिचय था और नई जानकारियों के साथ पुनः मिलते है ।
( सोम विषयक ) के है ।
सामवेद
* सामवेद 2 भाग में है ।
- पुर्वाचिंक
- उत्तरचिंक
* जिनमे सभी मंत्र संगीत के योग्य है । साम - गान में 7 स्वरों का उपयोग होता है ।
यजुर्वेद
* यजुर्वेद में 2 भेद है ।
- शुक्ल
- कृष्ण
शुक्ल यजुर्वेद : - यजुर्वेद में केवल मंत्रो का संग्रह है , विनियोग - वाक्यो का नही इसकी सहिंता वाजसनेयी सहिंता कहलाती है , इसमे 40 अध्य्या जिस की 2 प्रधान शाखायें -माध्यनिन्दन , उत्तर भारत अथवा दक्षिण भारत है ।
कृष्ण यजुर्वेद : - मंत्रो के साथ विनियोग - वाक्य भी है इसके 4 शाखाए है ।
- तैत्तिरीय
- मैत्रायणी
- काठक
- कठ - कपिष्ठल
* दोनों यजुर्वेद प्रायः गद्य में है , जो वैदिक सहिंता का प्रथम गद्य है ।
अथर्ववेद
* अथर्ववेद में अभिचार मंत्र संग्रहित है , यह 20 काण्ड में विभक्त है , जिसके अंदर प्रपाठक , अनुवाक , सूक्त और मंत्र है सन्निविष्ट है जिसके 1200 मंत्र ऋग्वेद के लिए गए है ।
* यह वैदिक साहित्य का संक्षेप परिचय था और नई जानकारियों के साथ पुनः मिलते है ।
धन्यवाद
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