वैदिक ईश्वर
वैदिक ईश्वर कौन है ?
* वेदो का ईश्वर वेदो में क्या कहता है ? ये जानने की कोशिश करते है और सृष्टि की रचना किस तरह हुई इत्यादि जानते है आये देखते है ,वेदो का ज्ञान विज्ञानं क्या कहते है ? की वेदो को खुद वैदिक ईश्वर ने बनाया है ये मेरा दावा नहीं बल्कि वेदो का और दयानंद चरस्वति अरे माफ़ करना सरस्वती वो दयानन्द जी तबाकू आदि का सेवन करते थे इसलिए चरस्वति लिख दिया क्षमा चाहता हु !
* वैदिक ईश्वर ने क्या पता वेदो को कैसे दिया होगा वो चार ऋषिमुनियो को दयानन्द की विश्व प्रशिद्ध पुस्तक चूत्यार्थ प्रकाश अरे फिर सत्यार्थ प्रकाश वैसे वह पुस्तक में सत्य छोड़ कर हर चीज है और प्रकाश शब्द नाम मात्र है और अँधेरा ही अँधेरा है बरहाल उसमे में दयानद लिखता है की जिस तरह से कोई शिष्य को गुरु की आवशकता होती है ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसी प्रकार से जो चार ऋषिमुनियों को वेद प्राप्त होए उन्हें भी तो गुरु की आवशकता थी जिस तरह से कोई गुरु अपने शिष्य को पढता है उसी प्रकार वैदिक ईश्वर ने उन चारो को पढ़ाया और पूछा जाये वैदिक ईश्वर तो निराकार कर है तो मुँह से कैसे पढ़ाया होगा ? कहते दिल में बैठाल दिया तो फिर मुर्ख आदमी ऐसा क्यों कर कहा की जैसे कोई गुरु पढता है उसी तरह गुरु तो हाथ से लिख कर और मुँह से बोल कर समझता है और पढ़ता है वाह क्या कहने बरहाल आज का मुद्दा कुछ और है इन शार्ट बात करते है तो जवाब देते है की वो सर्वशक्तिमान है उसके के लिए कोई काम क्यों कर मुश्किल हो भला !
* वैदिक ईश्वर ने क्या पता वेदो को कैसे दिया होगा वो चार ऋषिमुनियो को दयानन्द की विश्व प्रशिद्ध पुस्तक चूत्यार्थ प्रकाश अरे फिर सत्यार्थ प्रकाश वैसे वह पुस्तक में सत्य छोड़ कर हर चीज है और प्रकाश शब्द नाम मात्र है और अँधेरा ही अँधेरा है बरहाल उसमे में दयानद लिखता है की जिस तरह से कोई शिष्य को गुरु की आवशकता होती है ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसी प्रकार से जो चार ऋषिमुनियों को वेद प्राप्त होए उन्हें भी तो गुरु की आवशकता थी जिस तरह से कोई गुरु अपने शिष्य को पढता है उसी प्रकार वैदिक ईश्वर ने उन चारो को पढ़ाया और पूछा जाये वैदिक ईश्वर तो निराकार कर है तो मुँह से कैसे पढ़ाया होगा ? कहते दिल में बैठाल दिया तो फिर मुर्ख आदमी ऐसा क्यों कर कहा की जैसे कोई गुरु पढता है उसी तरह गुरु तो हाथ से लिख कर और मुँह से बोल कर समझता है और पढ़ता है वाह क्या कहने बरहाल आज का मुद्दा कुछ और है इन शार्ट बात करते है तो जवाब देते है की वो सर्वशक्तिमान है उसके के लिए कोई काम क्यों कर मुश्किल हो भला !
* और जब ये जवाब हम देते है , तो कहते तर्क पर बैठना चाहिए ये काहानी है मूर्खो की बरहाल कोई नहीं आर्य समाजी और वैदिको के दिमाग में गोबर भरा है जिसके चलते जब भी मुँह खोलते है बदबू ही आती है यानि मन्दबुद्धि सवाल करते है जिनकी डिसनरी में २ + २ = 5 होते है उनके बारे क्या कहा जाये और जब हम सवाल पूछते है तो कहते है , की उसका ज्ञान हमें नहीं जिसका उद्धरण महाप्रलय की तारिख कहते है पता नहीं , वो चार ऋषिमुनि फिर धरती पर कब पुनर्जन्म लेंगे और कहा और एक लंबी लिस्ट हैं सवालो की ये क्या इनके बाप दाद भी हमारे सवालो के जवाब नहीं दे सकते और तर्क की बात करते है मुर्ख और अपने समय पर सर्वशक्तिमान का गुण गाते नजर आते है अरे मूर्खो तुम्हारा दवा है की तुम और वेद शाश्वत हो यानि कल भी थे आज भी है और रहेंगे दुनिया की उत्पत्ति के शुरुवात में वेद ही था और तुम्ही थे आएसा तुम्हारा दावा है तो सवाल किस्से होगा जो पहले आया या फिर बाद में तुम्हारे अनुसार और इस्लाम कब से है कई आर्टिकल में बता चूका हु और खुद ३००० साल पूराने हो और लाखो साल पहले की बात कर रहे हो बरहाल बात काफी लंबी होते जा रही है आज का मुद्दा कुछ और ही है , आज देखेंगे की वेदो के अनुसार वैदिक ईश्वर की पूरी कहानी ?
सृष्टि की रचना
* सबसे पहले देखते है की सृष्टि उत्पन्न होने से पहले क्या था ?
* सुर्ष्टि की उत्पत्ति के से पूर्व न अभाव वा असत्ता होता और न व्यक्त जगत रहता है , न लोक रहता और न अंतरिक्ष रहता है , जो आकाश से ऊपर निचे लोक - लोकान्तर है , वे भी नही रहते , क्या किसको घेरता वा आवरत करता है , सब कुछ कुहरान्धकार
( पूरा अंधकार होता है ) के गृह आवरण में रहता है , गहन गहरा क्योंकि रह सकता है ।
( ऋग्वेद 10 : 129 : 1)
( पूरा अंधकार होता है ) के गृह आवरण में रहता है , गहन गहरा क्योंकि रह सकता है ।
( ऋग्वेद 10 : 129 : 1)
* उस अवस्था में न तो मृत्यो रहती न ही काल व्यहार , न ही रात - दिन का चिन्ह का नही रहता ।
( ऋग्वेद 10 : 129 : 2 )
मनुस्मृति १ : ५ |
* तो ये सब था और चारो तरफ कुलंध्कार था तो वैदिक ईश्वर क्या कर रहा था ?
* " नुनं तदस्य काव्यो ..........अर्धे विषिते सस्न्नू । "
( अर्थर्वेद ४ : १ : ६ )
* अर्थात : - वैदिक ईश्वर प्रलय की अवस्था में सोता सा था फिर उसने सबको रच दिया।
( अर्थर्वेद ४ : १ : ६ )
* अर्थात : - वैदिक ईश्वर प्रलय की अवस्था में सोता सा था फिर उसने सबको रच दिया।
मनुस्मुर्ती १ : ७४ |
* महाराजा सो रहे थे जब आँखे खुली तो देखा मैं तो सो रहा था और जब सो कर उठे तो सोच रहे थे क्या करो तो ये किया ?
* " व्रात्य ........... समरयत।" ( अर्थवेद १५ : १ : १ )
अर्थात : - पहले वो अकेला था !
* " स प्रजापति........... जनयत ! "
( अर्थवेद १५ : १ : २ )
( अर्थवेद १५ : १ : २ )
अर्थात : - उसने अपने देखा और सोच कर प्रकट किया !
* " तदेकम ................... प्रजायत "
( अर्थवेद १५ : १ : ३ )
( अर्थवेद १५ : १ : ३ )
अर्थात : - और जो भी प्रकृति के कण सूक्षम अवस्था में थे उसमे घुस गया
* " स उदतिष्ठत्स प्राची दिशमणु व्य चलत "
( अर्थवेद १५ : २ : १ )
( अर्थवेद १५ : २ : १ )
अर्थात : - घुसने के बाद खड़ा हुआ और पूर्व दिशा की और चला।
निराकार को खड़े होने के लिए पैर किसने प्रदान किये ? क्या उससे भी पहले और कोई था जिसने पैर दिए ?
* " तं बृहच्च ........... देवा अनुव्य चलन।"
( अर्थवेद १५ : २ : २ )
( अर्थवेद १५ : २ : २ )
अर्थात : - और वैदिक ईश्वर के पीछे आकाश , सूर्य आदि पीछे पीछे चले।
* और घोड़े और बेल की सवारी पर बैठ कर वहा थोड़ा बहुत रच ( कुछ बना ) दिया।
( अर्थवेद १५ : २ : ३,४ ,५,६,७ ,८ )
* " स उदतिष्ठत्स दक्षिणा दिशमणु व्य चलत "
( अर्थवेद १५ : २ : ९ )
( अर्थवेद १५ : २ : ९ )
अर्थात : - फिर वाह से खड़ा हुआ और दक्षिण दिशा की और चला !
* पूर्व पच्चिम आदि दिशा का अंदाज कहा से लगाया होगा अंतरिक्ष में ना तो कोई ऊपर निचे ना ही कोई दिशा होती है पता नहीं कोनसा विज्ञानं है वेदो मेंआगे देखते है ?
* " तं यज्ञायज्ञीय च वामदेव्य ......... चलन।
( अर्थवेद १५ : २ : १० )
( अर्थवेद १५ : २ : १० )
अर्थात : - यज्ञ और वामवेद ,यजमान यज्ञ करने वाला और सब जिव जन्तु उसके साथ पीछे पीछे हो चले।
* फिर घोड़े और बेल की सवारी पर बैठ कर वह थोड़ा बहुत रच दिया। ( अर्थवेद १५ : २ : १२ ,१३ ,१४, )
* " स उदतिष्ठत्स प्रतीची दिशमणु व्य चलत "
( अर्थवेद १५ : २ : १५ )
( अर्थवेद १५ : २ : १५ )
अर्थात : - फिर वाह से खड़ा हुआ और पच्चिम दिशा की और चला ?
* जिस तरह सूरज आदि साथ पीछे-पीछे उसी तरह से साथ ऋषि , विरुप , वेराज और कुछ लोग
( मनुष्य ) पीछे पीछे चेले ( अर्थवेद १५ : २ : १६ )
( मनुष्य ) पीछे पीछे चेले ( अर्थवेद १५ : २ : १६ )
* फिर घोड़े और बेल की सवारी पर बैठ कर वह थोड़ा बहुत रच दिया। ( अर्थवेद १५ : २ : १८ ,१९ ,२० )
* " स उदतिष्ठत्स उदीची दिशमणु व्य चलत "
( अर्थवेद १५ : २ : २१ )
( अर्थवेद १५ : २ : २१ )
अर्थात : - फिर वाह से खड़ा हुआ और उत्तर दिशा की और चला ?
* श्येत और नौधस और ७ ऋषि और थोड़े बहुत मनुष्य भी पीछे पीछे हो चले ( अर्थवेद १५ : २ : २२ )
* फिर घोड़े और बेल की सवारी पर बैठ कर वह थोड़ा बहुत रच दिया। ( अर्थवेद १५ : २ : २४ से २८ )
* ये देखो वेदो का सर्वशक्तिमान वैदिक ईश्वर जो खुद जा जा कर बनाना रहा है ,इधर उधर घूम रहा है , सब पॉप लीला है ये है ज्ञान विज्ञानं ?
ऋतुओ की रचना
* " स संवत्सरमू ............. तिष्टसीती ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : १ )
( अर्थवेद १५ : ३ : १ )
अर्थात : - वह वैदिक ईश्वर वर्ष भर तक ऊंचा खड़ा रहा उससे देवताओ ने बोलो क्यों अब तू खड़ा है !
* पुरे साल खड़े खड़े पैर दर्द न दिए ! लगता है भूल गए थे की अब क्या करना है उसी के चकर में खड़े थे फिर देवताओ ने बताया की तू अब तक क्यों खड़ा है अब आगे ..........
* " सो sss ब्रिविदासन्दीं में सं भरत्विति "
( अर्थवेद १५ : ३ : २ )
अर्थात : - वो वैदिक ईश्वर बोला सिंहासन ( बैठने के लिए कुर्सी ) तू देवता धरो !
* बहुत जरुरी है जल्दी करो पैर दर्द जो दे रहे होंगे और ये कैसा सर्वशक्तिमान है जो अपने लिए कुर्सी को इंतजाम नहीं कर सकता ? अफ़सोस यहाँ वैदिक ईश्वर कम जोर निकला जल्दी करो देवताओ वर्ष भर से खड़े थे कही बेहोश हो के गिर न जाये ?
* " तस्मै व्रात्ययासन्दी सम्भरन "
( अर्थवेद १५ : ३ : ३ )
अर्थात : - देवताओ ने वैदिक ईश्वर के लिए सिंहासन मिलकर रखा !
* अच्छा हुआ रख दिया अब जल्दी से उनको बैठा दो और जरा पानी वाणी पिलाओ प्यासे होंगे वर्ष भर से खड़े थे !
* " तस्या ग्रीष्मश्च वर्षांश्च दौ ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : ४ )
अर्थात : - वसंत ऋतू और घाम ऋतू उस कुर्सी के दो पैर और वरसा , शरद ऋतू दो पैर होये !
* क्या लीला है , वैदिक ईश्वर की A . C और हीटर दोनों के मजे पर ऐसी कुर्सी का अविष्कार किस वैज्ञानिक ने किया था सब पोपलीला है ?
* " वेद आस्तरण ब्रह्मापबहणम ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : ७ )
अर्थात : - धन ( हिरे , जवाहरत आदि ) सिंहासन का बिछौना ( कुर्सी की गद्दी ) और अन्न ( खाने पिने की पिने कि चीजे ) सिरना !
* क्या बता है ? पिछवाड़े के नीचे हिरे जवाहरात की गद्दीया है और पीछे टेका लगा कर फलो के मजे वाह्ह क्या मजे है महाराजा के !
* " सामासाद उद्रीथो sssss पश्रय: ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : ८ )
अर्थात : - सामवेद बैठने का स्थान और ओ३म सहारा था !
* सामवेद ऋषियों को मिल गया था और इतनी पवित्र पुस्तक जगह मतलब सब सामवेद पर खड़े थे और ऑक्सीज़ंन के रूप में ओ३म का उच्चारण चालू था वर्ष भर खड़े थे इसलिए घबराहट चालू होगी और हा सब हॉस्पिटलों से ऑक्सीज़ंन ( O 2 ) के सिलेंडर हटाकर टेप रिकॉर्डर में ओ३म लगा दो सब मरीज ठीक हो जायेंगे क्या मिथ्या है !
आखिरकार वैदिक ईश्वर
* " तामासन्दी व्रात्य आरोंहत ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : ९ )
( अर्थवेद १५ : ३ : ९ )
अर्थात : - उस सिंहासन पर वैदिक ईश्वर चढ़ गया !
* होओओओ अच्छा हुआ चढ़ गए नहीं तो घबराहट के मारे निचे गिर पढ़ते , पानी वाणी पिलाओ और भूख भी लगी होगी फलो का जूस वगैरा दो चिकन की बूटी- वूटी अरे माफ़ करना शाकाहारी होंगे अगर मांस खाया तो वैदिक ईश्वर खुद राक्षस हो जायेंगे कृपया मत खिलाना !
* " तस्य देवजना : परिष्ट्कंदा आसनतसंकल्पा: प्राहाय्या ३ विशवानी भूतान्युपसद : ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : १० )
* " तस्य देवजना : परिष्ट्कंदा आसनतसंकल्पा: प्राहाय्या ३ विशवानी भूतान्युपसद : ! "
( अर्थवेद १५ : ३ : १० )
अर्थात : - देवता उसके सेवक ( नौकर ) और कुछ दूत ( सन्देश पहुंचने वाले ) बाकि उसके पास बैठ गए !
* वाह्ह बाबूजी जी के पास नौकर चाकर है क्या बात है , वर्ष भर से खड़े थे पैरो की मालिश वालिश कर दो थोड़ा आराम हो जाएंगे और बाकि उनके पास बेठ कर क्या कर रहे हो अपने अपने काम में लगो घर में बच्चे रो रहे होंगे उन्हें सम्भालो नहीं तो रात की रोटी नहीं मिलने वाली !
Note : - ये लेख सिर्फ उन भगवा आतंकवादी और आर्य समाजी के लिए है जो क़ुरान और अल्लाह की शान में गुस्ताखियाँ करते है सिर्फ उनके लिए नाकि पुरे हिन्दू के लिए क्या करे उनको उनकी भाषा में जवाब न दिया जाये जब तक उन्हें समझ मे नहीं आता इसलिए जो जैसी भाषा समझता है उसे उसी भाषा में समझाना पढता है उन मूर्खो के चकर में सब हिन्दू की धुलाई हो जाती है , पर क्या करे मित्रो आर्य समझी और भगवा आतंकवादीयो का इन्ही किताबो का दवा है , वेद और ज्ञान विज्ञानं क्या मिथ्या
( मजाक , झूट , बनावट , और सब कुछ ) है !
( मजाक , झूट , बनावट , और सब कुछ ) है !
* इस लेख का मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि उन इस्लाम विरोधीयो को जवाब देना है जो खुद की धार्मिक ग्रंथो की मान्यता को नही जानते और इस्लाम और मुसलमानों के ऊपर तानाकाशी करते है। अगर किसी को ठेस पहुंची होतो क्षमा चाहता हु !
धन्यवाद
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