सोमरस
इन्द्र देवता
जैसे कि आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में लिखा है , की इन्द्र , शिव , विष्णु , गणपति आदि नाम वैदिक ईश्वर के ही है ! वैसे सब जानते है , की दयानन्द और आर्य समाजियों ने वेदों के अर्थ का अनर्थ कर दिया है वेदो और पुराणों दोनों में सोमरस का जिक्र मिलता है , वेदों के अनुसार इन्द्र और पुराणों के अनुसार सभी देवी देवता सोमरस का पान करते थे , सब जनाते है कि सोमरस क्या है ? परंतु इन्हें ये बात हजम नहीं हो रही थी कि सोमरस यानी शराब जिस के चलते इन लोगो ने उसका अर्थ महा औषधीय कर दिया क्या मिथ्या है , क्योंकि इन्हें अपनी शक्ल आईने में पसंद नही आ रही , बरहाल आज भी इनके बड़े बुढो को पूछा जाए कि दादा सोमरस यानी क्या वो कहते नजर आते है ,की शराब और आज भी शिव के भक्त मजे से सोमरस का सेवन करते है , बरहाल आर्य समाजी और कई हिन्दू अपनी धार्मिक पुस्तको की नही मानते कहते है ये ऐसा नही वैसा आज तुम अपनी बातो को साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे हो , पर प्यारे इतिहास के पन्नो में तुम्हारा चिट्ठा बिट्ठा लिख चुका है और इतिहास गवाह है इन बातों का और यज्ञ के नाम पर क्या क्या होता था तुम खुद भली भांति जानते हो ।
* चलो एक क्षण के लिए मान ले की सोमरस यानी महाऔषधि होती है तो वह कहा मिलती है , तो पता चलता है , की वो अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर मिलती है , जो की भारत का हिस्सा नही अगर ये दावा है , की वो अखंड भारत का हिस्सा है , तो मुगल आदि विदेशी कैसे हुए ,वो तो भारत वासी थे या फिर आर्य , ब्रह्मण और देवी - देवता विदेशी थे , ये आप समझे सब पोपलीला है ।
* जैसे ऊपर बताया है कि इंद्र आदि वैदिक ईश्वर का नाम है , जिसके मुताबिक वैदिक ईश्वर शराब पीते थे ,
और दूसरे भी उन्हें शराब पिलाते थे , इन्द्र की नशेड़ी होने के कुछ प्रमाण वे भी वेदों से , वैसे कई बाते है परंतु कुछ ही प्रस्तुत करने की कोशिश करूँगा उससे पहले यज्ञ में क्या क्या होता था यहाँ नीचे देख सकते है ? 👉👉👉 ( नंगा नाच )
* जिस तरह दयानंद सरस्वती ने कहा है कि इंद्र आदि नाम वैदिक ईश्वर के ही है जिसके कई प्रमाण वेदों में भी है कि इन्द्र ही वैदिक ईश्वर है ये कुछ प्रमाण है 👇
* जिस तरह दयानंद सरस्वती ने कहा है कि इंद्र आदि नाम वैदिक ईश्वर के ही है जिसके कई प्रमाण वेदों में भी है कि इन्द्र ही वैदिक ईश्वर है ये कुछ प्रमाण है 👇
सोमरस
1 . " अयं त इन्द्र सोमो ............. द्रवा पिब "
( अर्थववेद २० : 5 : 5 )
* अर्थता : - हे इंद्र ( वैदिक ईश्वर ) तेरे लिए यह छाना हुआ सोम ( शराब ) बढ़िया आसन के ऊपर है तू आ अब दौड़ और इसका पान कर ( पी ) !
* वैदिक ईश्वर को पैर भी है दौड़ ने को वाह्ह.................
2 . " शचीगों................. हूयसे "
( अर्थववेद २० : 5 : 6 )
* अर्थता : - हे स्पष्ट वाणी वाले सत्कार वाले यह सोमरस ( शराब ) तेरे लिए रण ( युद्ध ) जितने के लिए सिद्ध किया है , हे शत्रु के तहस नहस करने वाले आवाहन ( बुलाया , पुकारा ) जाता है !
( शराब पीके लड़ो )
3 ." यस्ते ................. मनः "
( अर्थववेद २० : 5 : 7 )
* अर्थता : - हे तेज की वृष्टि ( पानी बरसाने वाले ) न गिरने वाले अतिशय करके न गिरने वाले रक्षा करने वाले सोमरस पिने का व्यवहार ( काम में लाना, प्रयोग ) है उसके मन को में धारण करता हु !
* मतलब शराब पिने वालो को पसंद करता है !
4 ." आ याहि .................मम "
( अर्थववेद २० : 47 : 7 )
* अर्थता : - हे इंद्र तू आ क्योकि ,तेरे लिए हमने सोमरस ( शराब ) सिद्ध किया है इस रस को पी मेरे इस उत्तम आसन पर बैठ !
5 ." दधिषवा .................इन्दवः "
( अर्थववेद २० : 6 : 5 )
* अर्थता : - हे इंद्र अड़ीकार करने योग्य है सिद्ध किये हुए सोमरस ( शराब ) को पेट में धर व्यवहार ( काम में लाना, प्रयोग ) में रहने वाले सब चीज तेरे लिए है !
6 ." गिर्वण : ..............त्वदातामिदशः "
( अर्थववेद २० : 6 : 6 )
* अर्थता : हे वाणियो से सेवन योग्य हमारे ऐश्वरयो की रक्षा कर मधुर रस की धाराओं ( शराब की नदिया )करके प्राप्त किया जाता है , हे इंद्र सब तेरा ही दिया हुआ यश ( एहसान , महिमा ) है !
( क्या बात है पियो और पिलाओ )
7 ." अभी ........... वावृधे "
( अर्थववेद २० : 6 : 7 )
* अर्थता :- सेवक लोग न घटने वाले धनो को देखकर इंद्र से मिलते है सोमरस ( शराब )पीकर बढ़ा है !
* वाह्ह वाहह क्या तरक्की का साधन है !
8 ." ऋजीषी ...........मत्सदीइन्द्रः "
( अर्थववेद २० : 12 : 7 )
* अर्थता :- महाधनि व्रजधारी ( हाथो में हथियारों पकड़ा हुआ ) बलवान हिंसक शत्रुओ का हारा ने वाला बलवान सेना का राजा दुश्मनो को मारने ने वाला सोमपावा { सोम ( शराब ) का पिने वाला } इंद्र दो घोड़ो से जोत कर सामने आवे और मध्याह में यज्ञ के बीज आनंद पावे !
* वैदिक ईश्वर ( इंद्र )शरीर धारी भी है जो की ऊपर वाले मंत्रो से स्पष्ट हो रहा है और आगे भी देखेंगे शरीर धारी होंने के प्रमाण ?
9 ." उत्ती ..........सुतम "
( अर्थववेद २० : 42 : ३ )
* अर्थता :- हे इंद्र पराक्रम के साथ उठते हुए तूने सिद्ध किया हुआ सोम ( शराब )पीकर दोनों जबड़ो को हिलाया है !
10 ." दाना .......... स्योजसा "
( अर्थववेद २० : 53 : 2 )
( अर्थववेद २० : 57 :12 )
* अर्थता :-जिस तरह से हाथी मद के कारण बहुत प्रकार से झपट लगाता है वैसे ही तुझे कोई नहीं रोक सकता रस को तू प्राप्त कर महान हो कर तू बल के साथ विचरता है !
* जिस तरह हाथी के सोबत के दिन आते है तो उसके कान के से मद बहता है जिस के कारण वो बे काबू हो जाता सब चीज तहस नहस कर देता है उसी प्रकार से सोमरस पिने के बाद पागलो की तरह से हरकते करो ! सब पोपलीला है !
11 ." समी .......... स्मृतिभिः "
( अर्थववेद २० : 54 : 2 )
* अर्थता :- पुकारने वाले प्रजागण सोम ( शराब ) के पिने के लिए जब इंद्र को मिलकर पुकारने लगे बढ़ती के लिए नियम धारण करने वाला सब मिल कर पुकारने लगे ! वाह रे शराबियो की टोली खुद भी पियो और इंद्र को भी पिलाओ वाह्ह वैदिक ईश्वर वाह्ह क्या लीला है !
वैदिक ईश्वर शरीरधारी
* हे बृहस्पति और इंद्र आनंद देने वाले बलवान विरो को निवास कराने वाले तुम दोनों सोमरस को इस यज्ञ में पीओ । ( अर्थववेद 20 : 13 : 1 )
* आगे बढ़ो और आकाश में आओ जाओ तुम्हारे लिए स्थान बनाया गया है (अर्थववेद 20 : 13 : 2 )
* ☝️ उड़ने वाले घोड़े से आकाश में आते जाते थे 🤔 कभी घोड़ा कभी हाथी क्या तमाशा लगा रखा है वैदिक ईश्वर ने ?
* इन्द्र के दो हाथ है जो अवसर आने पर उसका उपयोग करता है । (अर्थववेद 19 : 13 : 1 )
* हे इन्द्र धन के लिए जोड़े गये सुंदर केशो ( बाल )
वाले रथ चलने वाले दो घोड़े तुझको सब ओर ले चले
(अर्थववेद 20 : 38 : 2 ) (अर्थववेद 20 : 47 : 28 )
* व्रजधारी ( हाथों में हथियार वाला ) तेजोमय इन्द्र ही हवा नित्य मिले हुए दोनों संयोग वियोग गुणों का मिलाने वाला है और वचन का योग्य बनाने वाला है ।
(अर्थववेद 20 : 38 : 5 )
* क्या पोपलीला है वैदिक ईश्वर कभी घोड़े पर सवारी कभी
कभी व्रजधारी क्या मिथ्या है निराकार की 🙄
* और कई सौ उदहारण है शरीर धारी होने के परंतु अक्ल मंदो के लिए इतना काफी है वैदिक ईश्वर ( इन्द्र ) नशेड़ी होने के साथ साथ बलात्कारी भी था 👇👇👇👇
* तो ये थे वैदिक ईश्वर के शरीर धारी और नशेडी होने के कुछ प्रमाण क्या बात है ये तो चंद ही है नही तो वेद अश्लीलता और ऐसी बातों से भरा पड़ा है । चलो एक क्षण के लिए मान लिया कि सोमरस का मतलब ओषधि है , पर ये तो सिद्ध हुआ कि वैदिक ईश्वर शरीरधारी है और वेदों का बनावटी ईश्वर निराकार नही बल्कि दो पैरो पर चलने कोई मूर्ख मनुष्य है जिसने अपने स्वार्थ के लिए वेदों की रचना की थी , नियोग के नाम पर अपनी हवस पूरी करना अपने आपको श्रष्ट बनाने के लिए शुद्र आदि के नाम देना और बहुत कुछ केवल अपने मतलब के लिए 😢
प्रथम समुल्लास |
प्रथम समुल्लास |
* इस लेख का मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि उन इस्लाम विरोधीयो को जवाब देना है जो खुद की धार्मिक ग्रंथो की मान्यता को नही जानते और इस्लाम और मुसलमानों के ऊपर तानाकाशी करते है। अगर किसी को ठेस पहुंची होतो क्षमा चाहता हु !
धन्यवाद