कयामत ( इंसाफ का दिन )
* इस लेख हम जानने की कोशिश करेंगे कि कयामत या फिर क़ियामत काहा जाता है । और महशर का ख़ौफ़ नाक मंजर ?
* कयामत का मतलब होता है ।उठने का दिन , आख़िरत , जजमेंट डे इत्यादि । और ।
NOTE : - लेख काफी बड़ा हो सकता है , परंतु बहुत मत्त्वपूर्ण है , से पढ़े और मेरे लिए भी दुआ करे ।
महशर का ख़ौफ़ नाक मंजर
إِذَا ٱلسَّمَآءُ ٱنفَطَرَتْ
जब आसमान तर्ख़ जाएगा ।
وَإِذَا ٱلْكَوَاكِبُ ٱنتَثَرَتْ
और जब तारे झड़ पड़ेंगे ।
وَإِذَا ٱلْبِحَارُ فُجِّرَتْ
और जब दरिया बह (कर एक दूसरे से मिल) जाएँगे
وَإِذَا ٱلْقُبُورُ بُعْثِرَتْ
और जब कब्रें उखाड़ दी जाएँगी ।
عَلِمَتْ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ وَأَخَّرَتْ
तब हर शख़्श को मालूम हो जाएगा कि उसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था ।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلْإِنسَٰنُ مَا غَرَّكَ بِرَبِّكَ ٱلْكَرِيمِ
ऐ इन्सान तुम्हें अपने परवरदिगार के बारे में किस चीज़ ने धोका दिया
ٱلَّذِى خَلَقَكَ فَسَوَّىٰكَ فَعَدَلَكَ
जिसने तुझे पैदा किया तो तुझे दुरूस्त बनाया और मुनासिब आज़ा दिए ।
فِىٓ أَىِّ صُورَةٍ مَّا شَآءَ رَكَّبَكَ
और जिस सूरत में उसने चाहा तेरे जोड़ बन्द मिलाए
كَلَّا بَلْ تُكَذِّبُونَ بِٱلدِّينِ
हाँ बात ये है कि तुम लोग जज़ा (के दिन) को झुठलाते हो ।
وَإِنَّ عَلَيْكُمْ لَحَٰفِظِينَ
हालॉकि तुम पर निगेहबान मुक़र्रर हैं ।
كِرَامًا كَٰتِبِينَ
बुर्ज़ुग लोग (फरिश्ते सब बातों को) लिखने वाले (केरामन क़ातेबीन) ।
يَعْلَمُونَ مَا تَفْعَلُونَ
जो कुछ तुम करते हो वह सब जानते हैं ।
إِنَّ ٱلْأَبْرَارَ لَفِى نَعِيمٍ
बेशक नेको कार (बेहिश्त की) नेअमतों में होंगे ।
وَإِنَّ ٱلْفُجَّارَ لَفِى جَحِيمٍ
और बदकार लोग यक़ीनन जहन्नुम में जज़ा के दिन
يَصْلَوْنَهَا يَوْمَ ٱلدِّينِ
उसी में झोंके जाएँगे ।
وَمَا هُمْ عَنْهَا بِغَآئِبِينَ
और वह लोग उससे छुप न सकेंगे ।
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا يَوْمُ ٱلدِّينِ
और तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या है ।
ثُمَّ مَآ أَدْرَىٰكَ مَا يَوْمُ ٱلدِّينِ
फिर तुम्हें क्या मालूम कि जज़ा का दिन क्या चीज़ है
يَوْمَ لَا تَمْلِكُ نَفْسٌ لِّنَف شَيْـًٔا وَٱلْأَمْرُ يَوْمَئِذٍ لِّلَّهِ
उस दिन कोई शख़्श किसी शख़्श की भलाई न कर सकेगा और उस दिन हुक्म सिर्फ ख़ुदा ही का होगा । ( सूरह 82 )
* इस बात में कोई दोराहे नही है ,की दुनिया व पृथ्वी का अंत एक दीन जरूर हो ।
* चाहे वे वैदिक हो , चाहे कोई ईसाई हो , वैज्ञानिक हो ,या फिर नास्तिक हो या कोई भी हो सब मानते और जानते है ।
मानव की उत्पत्ति का मकशद
وَمَا خَلَقْتُ ٱلْجِنَّ وَٱلْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ
और मैने ( अल्लाह ) जिनों और आदमियों को इसी ग़रज़ से पैदा किया कि वह मेरी इबादत करें । ( 51 : 56 )
* पालनहार ने केवल अपनी भक्ति और उपासना के लिए पैदाइश फरमाई है ।
* वो भी केवल दिन और रात के कुछ हिस्सों में ।
*वह जिसने मौत और जिंदगी पैदा की ताकि तुम्हारी जांच (परीक्षा) हो कि तुम में अच्छा काम कौन करता है, और वही है इज्जत वाला बख्शीश वाला।( 67:2)
*हर जान को मौत का मज़ा चकना है,और हम(अल्लाह)अच्छी और बुरी परिस्तिथि में दाल कर मानव की परीक्षा लेता है अंत मे तुम्हे मेरे(अल्लाह) पास ही आना है।{क़ुरआन(21:35)& (32:11) }
* जिंदगी का मकशद यह है, अच्छे कर्म(अमल) करना।।
* और अच्छी और बुरी परस्ती में डालकर
मानव की परीक्षा लेता है कि कोन कितना मजबूत है !
एक पालनहार के ऊपर विश्वास रखता है ।
* मुह से कह देना बडा आसान प्रतीत होता है परंतु और उस पर साबित कदम रहना उत ना ही मुश्किल ।
* जो पालनहार के नजदीक जितना प्रिय होता है ,उससे अमल के सबब उतना ही पालनहार उसको कठिन परस्ती में डालकर परीक्षा लेता है ।
* मैं ये नही कहता कि ईमान लाने पर दुनियावी दौलत से माला माल हो जाये पर जिस पर अल्लाह का करम हो उसकी मेहनत के सबब है पर ये कह सकता हु की आख़िरत में कामयाबी होगि इन्शाल्लाह ।
क़यामत की निशानियाँ
فَإِنَّمَا هِىَ زَجْرَةٌ وَٰحِدَةٌ فَإِذَا هُمْ يَنظُرُونَ
और तुम ज़लील होगे और वह (क़यामत) तो एक ललकार होगी फिर तो वह लोग फ़ौरन ही (ऑंखे फाड़-फाड़ के) देखने लगेंगे ।
وَقَالُوا۟ يَٰوَيْلَنَا هَٰذَا يَوْمُ ٱلدِّينِ
और कहेंगे हाए अफसोस ये तो क़यामत का दिन है
هَٰذَا يَوْمُ ٱلْفَصْلِ ٱلَّذِى كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ
(जवाब आएगा) ये वही फैसले का दिन है जिसको तुम लोग (दुनिया में) झूठ समझते है
ٱحْشُرُوا۟ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ وَأَزْوَٰجَهُمْ وَمَا كَانُوا۟ يَعْبُدُونَ
(और फ़रिश्तों को हुक्म होगा कि) जो लोग (दुनिया में) सरकशी करते थे उनको और उनके साथियों को और खुदा को छोड़कर जिनकी परसतिश करते हैं । ( 37 : 19 से 23 )
जिस बाते में सक करते थे तुम्हे बता दिया जायेगा
قُلْ أَغَيْرَ ٱللَّهِ أَبْغِى رَبًّا وَهُوَ رَبُّ كُلِّ شَىْءٍ وَلَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ إِلَّا عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
(ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि क्या मैं ख़ुदा के सिवा किसी और को परवरदिगार तलाश करुँ हालॉकि वह तमाम चीज़ो का मालिक है और जो शख्स कोई बुरा काम करता है उसका (वबाल) उसी पर है और कोई शख्स किसी दूसरे के गुनाह का बोझ नहीं उठाने का फिर तुम सबको अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लौट कर जाना है तब तुम लोग जिन बातों में बाहम झगड़ते थे वह सब तुम्हें बता देगा । ( 6 : 164 )
असल कामयाबी
وَمَآ أُمِرُوٓا۟ إِلَّا لِيَعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ حُنَفَآءَ وَيُقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤْتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ وَذَٰلِكَ دِينُ ٱلْقَيِّمَةِ
(तब) और उन्हें तो बस ये हुक्म दिया गया था कि निरा ख़ुरा उसी का एतक़ाद रख के बातिल से कतरा के ख़ुदा की इबादत करे और पाबन्दी से नमाज़ पढ़े और ज़कात अदा करता रहे और यही सच्चा दीन है ( 98 : 5 )
وَٱلْعَصْرِ إِنَّ ٱلْإِنسَٰنَ لَفِى خُسْرٍ إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلْحَقِّ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلصَّبْرِ
वक्त की क़सम बेशक इन्सान घाटे में है मगर जो लोग ईमान लाए, और अच्छे काम करते रहे और आपस में हक़ का हुक्म और सब्र की वसीयत करते । ( सुरह 103 )
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हाय्य अफ़सोस
يَوْمَ تَأْتِى كُلُّ نَفْسٍ تُجَٰدِلُ عَن نَّفْسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
और (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्श अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा । ( 16 : 111 )
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًا قَرْيَةً كَانَتْ ءَامِنَةً مُّطْمَئِنَّةً يَأْتِيهَا رِزْقُهَا رَغَدًا مِّن كُلِّ مَكَانٍ فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ ٱللَّهِ فَأَذَٰقَهَا ٱللَّهُ لِبَاسَ ٱلْجُوعِ وَٱلْخَوْفِ بِمَا كَانُوا۟ يَصْنَعُونَ
और हर शख़्श को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जुल्म न किया जाएगा ख़ुदा ने एक गाँव की मसल बयान फरमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ से बाफराग़त (बहुत ज्यादा) उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने ख़ुदा की नअमतों की नाशुक्री की तो ख़ुदा ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चखा दिया । ( 16 : 112 )
कहते वो दिन कब आयेगा ?
قُلْ تَرَبَّصُوا۟ فَإِنِّى مَعَكُم مِّنَ ٱلْمُتَرَبِّصِينَ
तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी इन्तेज़ार करता हूँ
أَمْ تَأْمُرُهُمْ أَحْلَٰمُهُم بِهَٰذَآ أَمْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ
क्या उनकी अक्लें उन्हें ये (बातें) बताती हैं या ये लोग हैं ही सरकश ।
أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُۥ بَل لَّا يُؤْمِنُونَ
क्या ये लोग कहते हैं कि इसने क़ुरान ख़ुद गढ़ लिया है बात ये है कि ये लोग ईमान ही नहीं रखते ।
فَلْيَأْتُوا۟ بِحَدِيثٍ مِّثْلِهِۦٓ إِن كَانُوا۟ صَٰدِقِينَ
तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लाएँ ।
أَمْ خُلِقُوا۟ مِنْ غَيْرِ شَىْءٍ أَمْ هُمُ ٱلْخَٰلِقُونَ
क्या ये लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या यही लोग (मख़लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं ।
أَمْ خَلَقُوا۟ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ بَل لَّا يُوقِنُونَ
या इन्होने ही ने सारे आसमान व ज़मीन पैदा किए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग यक़ीन ही नहीं रखते ।
أَمْ عِندَهُمْ خَزَآئِنُ رَبِّكَ أَمْ هُمُ ٱلْمُصَۣيْطِرُونَ
क्या तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने इन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम है ।
أَمْ لَهُمْ سُلَّمٌ يَسْتَمِعُونَ فِيهِ فَلْيَأْتِ مُسْتَمِعُهُم بِسُلْطَٰنٍ مُّبِينٍ
या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ कर आसमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई सरीही दलील पेश करे
( 52 : 31 से 38 )
उस दिन अपने गलती इकरार
قَالَ قَرِينُهُۥ رَبَّنَا مَآ أَطْغَيْتُهُۥ وَلَٰكِن كَانَ فِى ضَلَٰلٍۭ بَعِيدٍ
(उस वक्त) उसका साथी (शैतान) कहेगा परवरदिगार हमने इसको गुमराह नहीं किया था बल्कि ये तो ख़ुद सख्त गुमराही में मुब्तिला था । ( 50 : 27 )
قَالَ لَا تَخْتَصِمُوا۟ لَدَىَّ وَقَدْ قَدَّمْتُ إِلَيْكُم بِٱلْوَعِيدِ
इस पर ख़ुदा फ़रमाएगा हमारे सामने झगड़े न करो मैं तो तुम लोगों को पहले ही (अज़ाब से) डरा चुका था । ( 50 : 28 )
مَا يُبَدَّلُ ٱلْقَوْلُ لَدَىَّ وَمَآ أَنَا۠ بِظَلَّٰمٍ لِّلْعَبِيدِ
मेरे यहाँ बात बदला नहीं करती और न मैं बन्दों पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म करने वाला हूँ । ( 50 : 29 )
وَقَالَ ٱلشَّيْطَٰنُ لَمَّا قُضِىَ ٱلْأَمْرُ إِنَّ ٱللَّهَ وَعَدَكُمْ وَعْدَ ٱلْحَقِّ وَوَعَدتُّكُمْ فَأَخْلَفْتُكُمْ وَمَا كَانَ لِىَ عَلَيْكُم مِّن سُلْطَٰنٍ إِلَّآ أَن دَعَوْتُكُمْ فَٱسْتَجَبْتُمْ لِى فَلَا تَلُومُونِى وَلُومُوٓا۟ أَنفُسَكُم مَّآ أَنَا۠ بِمُصْرِخِكُمْ وَمَآ أَنتُم بِمُصْرِخِىَّ إِنِّى كَفَرْتُ بِمَآ أَشْرَكْتُمُونِ مِن قَبْلُ إِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
अर्थात : - जब मामले का फ़ैसला हो चुकेगा तब शैतान कहेगा, "अल्लाह ने तो तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने भी तुमसे वादा किया था, फिर मैंने तो तुमसे सत्य के प्रतिकूल कहा था। और मेरा तो तुमपर कोई अधिकार नहीं था, सिवाय इसके कि मैंने मान ली; बल्कि अपने आप ही को मलामत करो, न मैं तुम्हारी फ़रियाद सुन सकता हूँ और न तुम मेरी फ़रियाद सुन सकते हो। पहले जो तुमने सहभागी ठहराया था, मैं उससे विरक्त हूँ।" निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखदायिनी यातना है । ( 14 : 22 )
शैतान कौन है ?
* वो तो साफ निकल जायेगा और हमारा क्या बनेगा ? 😢😢😢😢😢😢
* शैतान = शरारत करने वाले ,
शरकाश बाज ।
* और ये कुछ इंशानो में और कुछ जिन्नों में होते है ।
* शैतान इब्लिश मलून ये जिन्नों में से है , उसका धोखा है इंशानो को अपने पाक पालनहार के सीधे रास्ते से रोकने के लिए ।
* शैतान की इतनी औकात नही है कि वे हमें हाथों से रोक सके । उसका काम है केवल गंदे कामो और शिर्क की दावत देना , उससे ज्याद नही ।
* और एक मस्जिद में 5 वक़्त की दावत का एलान करता है ।
* इस्लाम मे मस्जिद काहा यहाँ देखे @
* और पालनहार ने मनुष्य को कर्म के लिए स्वतंत्रता दी है , वे किसकी बात पसन्द करता है , शैतान की या सच्चई की ।
* यह असल मकशद है , परीक्षा , कौन इस पर सफल होता है ? और कौन असफल ? इस पर ही फल की प्रप्ति हो गई ।
* बरहाल 2 पग पर चलने वालों समझदारों के किये काफी हो ।
* इसलिए इंशानो में के कुछ शैतानो बाज आजाओ और खुद भी गुमराही से बचो और साधारण मनुष्यों गुमराह करना छोड़ दो।
और आओ सच्चई की तरफ ।
* फिर एक - दूसरे पर बात डालेंगे ?
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ بِهَٰذَا ٱلْقُرْءَانِ وَلَا بِٱلَّذِى بَيْنَ يَدَيْهِ وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلظَّٰلِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ ٱلْقَوْلَ يَقُولُ ٱلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ لَوْلَآ أَنتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ
और जो लोग इनकार करने वाले हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते) ( 34 : 31 )
قَالَ ٱلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوٓا۟ أَنَحْنُ صَدَدْنَٰكُمْ عَنِ ٱلْهُدَىٰ بَعْدَ إِذْ جَآءَكُم بَلْ كُنتُم مُّجْرِمِينَ
तो सरकश लोग कमज़ोरों से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (खुदा की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुमको (ज़बरदस्ती अम्ल करने से) रोका था
(हरगिज़ नहीं) बल्कि तुम तो खुद मुजरिम थे । ( 34 : 32 )
وَقَالَ ٱلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ بَلْ مَكْرُ ٱلَّيْلِ وَٱلنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَآ أَن نَّكْفُرَ بِٱللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُۥٓ أَندَادًا وَأَسَرُّوا۟ ٱلنَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا۟ ٱلْعَذَابَ وَجَعَلْنَا ٱلْأَغْلَٰلَ فِىٓ أَعْنَاقِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम खुद भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात-दिन की फरेबदेही ने (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको खुदा न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब ये लोग अज़ाब को (अपनी ऑंखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछताएँगे और जो लोग काफिर हो बैठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डाल देंगे जो कारस्तानियां ये लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुवाफिक़ तो सज़ा दी जाएगी । ( 34 : 33 )
* दोजख की तरफ जाना पढ़ेगा
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًا حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَآ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِّنكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ ءَايَٰتِ رَبِّكُمْ وَيُنذِرُونَكُمْ لِقَآءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا قَالُوا۟ بَلَىٰ وَلَٰكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ ٱلْعَذَابِ عَلَى ٱلْكَٰفِرِينَ
और जो लोग इनकार करने वाले थे उनके झुंड के झुंड जहन्नुम की तरफ हॅकाए जाएँगे और यहाँ तक की जब जहन्नुम के पास पहुँचेगें तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएगें और उसके दरोग़ा उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में के पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ (बद) के पेश आने से डराते वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और अज़ाब का हुक्म इनकार करने वाले के बारे में पूरा हो कर रहेगा। ( 39 :72 )
قِيلَ ٱدْخُلُوٓا۟ أَبْوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَا فَبِئْسَ مَثْوَى ٱلْمُتَكَبِّرِينَ
(तब उनसे) कहा जाएगा कि जहन्नुम के दरवाज़ों में धँसो और हमेशा इसी में रहो ग़रज़ तकब्बुर करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है ।
( 39 : 72 )
* उस दिन हर चीज का हिसाब हो गया ।
* बिस्मिल्लाह राहमनिर रहीम का सच्च यहाँ देखे @
* وَنَضَعُ ٱلْمَوَٰزِينَ ٱلْقِسْطَ لِيَوْمِ ٱلْقِيَٰمَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْـًٔا وَإِن كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَىٰ بِنَا حَٰسِبِينَ
और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाज़िर करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं । ( 21 : 47 )
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ يَدَاكَ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّٰمٍ لِّلْعَبِيدِ
और उस वक्त उससे कहा जाएगा कि ये उन आमाल की सज़ा है जो तेरे हाथों ने पहले से किए हैं और बेशक खुदा बन्दों पर हरगिज़ जुल्म नहीं करता । ( 22 : 10 )
وَإِنَّ ٱلدِّينَ لَوَٰقِعٌ
और (आमाल की) जज़ा (सज़ा) ज़रूर होगी ( 51 : 6 )
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وَإِن تَكُ حَسَنَةً يُضَٰعِفْهَا وَيُؤْتِ مِن لَّدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا
ख़ुदा तो हरगिज़ ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता बल्कि अगर ज़र्रा बराबर भी किसी की कोई नेकी हो तो उसको दूना करता है और अपनी तरफ़ से बड़ा सवाब अता फ़रमाता है ! ( 4 : 40 )
فَكَيْفَ إِذَا جِئْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍۭ بِشَهِيدٍ وَجِئْنَا بِكَ عَلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ شَهِيدًا
(ख़ैर दुनिया में तो जो चाहे करें) भला उस वक्त क्या हाल होगा जब हम हर गिरोह के गवाह तलब करेंगे और (मोहम्मद) तुमको उन सब पर गवाह की हैसियत में तलब करेंगे । ( 4 : 41 )
يَوْمَئِذٍ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَعَصَوُا۟ ٱلرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلْأَرْضُ وَلَا يَكْتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثً
उस दिन जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया और रसूल की नाफ़रमानी की ये आरज़ू करेंगे कि काश (वह पेवन्दे ख़ाक हो जाते) और उनके ऊपर से ज़मीन बराबर कर दी जाती और अफ़सोस ये लोग ख़ुदा से कोई बात उस दिन छुपा भी न सकेंगे । ( 4 : 42 )
उस दिन कोई काम नही आयेगा ?
لَن تَنفَعَكُمْ أَرْحَامُكُمْ وَلَآ أَوْلَٰدُكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ يَفْصِلُ بَيْنَكُمْ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
क़यामत के दिन न तुम्हारे रिश्ते नाते ही कुछ काम आएँगे न तुम्हारी औलाद (उस दिन) तो वही फ़ैसला कर देगा और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है । ( 60 : 3 )
क्या इस्लाम मे स्त्रियों पर जुल्म ?
فَإِذَا جَآءَتِ ٱلصَّآخَّةُ
तो जब कानों के परदे फाड़ने वाली (क़यामत) आ मौजूद होगी ।
( 80 :33 )
يَوْمَ يَفِرُّ ٱلْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ
उस दिन आदमी अपने भाई । ( 80 : 34 )
وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ
और अपनी माँ और अपने बाप ( 80 : 35 )
وَصَٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ
और अपने लड़के बालों से भागेगा । ( 80 :36 )
لِكُلِّ ٱمْرِئٍ مِّنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ
उस दिन हर शख़्श (अपनी नजात की) ऐसी फ़िक्र में होगा जो उसके (मशग़ूल होने के) लिए काफ़ी हों ( 80 :37 )
* जब सब देख लेंगे फिर क्या कहेंगे ?
وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلْمُجْرِمُونَ نَاكِسُوا۟ رُءُوسِهِمْ عِندَ رَبِّهِمْ رَبَّنَآ أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَٱرْجِعْنَا نَعْمَلْ صَٰلِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ
और (ऐ रसूल) तुम को बहुत अफसोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक्त) अपने परवरदिगार की बारगाह में अपने सर झुकाए खड़े हैं और(अर्ज़ कर रहे हैं) परवरदिगार हमने (अच्छी तरह देखा और सुन लिया तू हमें दुनिया में एक दफा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करें । ( 32 : 12 )
* और जब आगे जाने लगेंगे ?
مِن دُونِ ٱللَّهِ فَٱهْدُوهُمْ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلْجَحِيمِ
उनको (सबको) इकट्ठा करो फिर उन्हें जहन्नुम की राह दिखाओ ।
وَقِفُوهُمْ إِنَّهُم مَّسْـُٔولُونَ
और (हाँ ज़रा) उन्हें ठहराओ तो उनसे कुछ पूछना है !
مَا لَكُمْ لَا تَنَاصَرُونَ
(अरे कमबख्तों) अब तुम्हें क्या होगा कि एक दूसरे की मदद नहीं करते ।
بَلْ هُمُ ٱلْيَوْمَ مُسْتَسْلِمُونَ
(जवाब क्या देंगे) बल्कि वह तो आज गर्दन झुकाए हुए हैं ।
وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَآءَلُونَ
और एक दूसरे की तरफ मुतावज्जे होकर बाहम पूछताछ करेंगे ।
قَالُوٓا۟ إِنَّكُمْ كُنتُمْ تَأْتُونَنَا عَنِ ٱلْيَمِينِ
(और इन्सान शयातीन से) कहेंगे कि तुम ही तो हमारी दाहिनी तरफ से (हमें बहकाने को) चढ़ आते थे ।
قَالُوا۟ بَل لَّمْ تَكُونُوا۟ مُؤْمِنِينَ
वह जवाब देगें (हम क्या जानें) तुम तो खुद ईमान लाने वाले न थे ।
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيْكُم مِّن سُلْطَٰنٍۭ بَلْ كُنتُمْ قَوْمًا طَٰغِينَ
और (साफ़ तो ये है कि) हमारी तुम पर कुछ हुकूमत तो थी नहीं बल्कि तुम खुद सरकश लोग थे ।
فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَآ إِنَّا لَذَآئِقُونَ
फिर अब तो लोगों पर हमारे परवरदिगार का (अज़ाब का) क़ौल पूरा हो गया कि अब हम सब यक़ीनन अज़ाब का मज़ा चखेंगे ।
فَأَغْوَيْنَٰكُمْ إِنَّا كُنَّا غَٰوِينَ
हम खुद गुमराह थे तो तुम को भी गुमराह किया ।
فَإِنَّهُمْ يَوْمَئِذٍ فِى ٱلْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ
ग़रज़ ये लोग सब के सब उस दिन अज़ाब में शरीक होगें ।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِٱلْمُجْرِمِينَ
और हम तो गुनाहगारों के साथ यूँ ही किया करते हैं ये लोग ऐसे (शरीर) थे ।
إِنَّهُمْ كَانُوٓا۟ إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ يَسْتَكْبِرُونَ
कि जब उनसे कहा जाता था कि खुदा के सिवा कोई माबूद नहीं तो अकड़ा करते थे । ( 37 : 23 से 35 )
* ये मत समझना कि अल्लाह कुछ नही जानता ?
وَلِلَّهِ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ فَٱدْعُوهُ بِهَا وَذَرُوا۟ ٱلَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِىٓ أَسْمَٰٓئِهِۦ سَيُجْزَوْنَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
और अच्छे (अच्छे) नाम ख़ुदा ही के ख़ास हैं तो उसे उन्हीं नामों में पुकारो और जो लोग उसके नामों में कुफ्र करते हैं उन्हें (उनके हाल पर) छोड़ दो और वह बहुत जल्द अपने करतूत की सज़ाएं पाएंगें ।
وَمِمَّنْ خَلَقْنَآ أُمَّةٌ يَهْدُونَ بِٱلْحَقِّ وَبِهِۦ يَعْدِلُونَ
और हमारी मख़लूक़ात से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दीने हक़ की हिदायत करते हैं और हक़ से इन्साफ़ भी करते हैं ।
وَٱلَّذِينَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا سَنَسْتَدْرِجُهُم مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُونَ
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया हम उन्हें बहुत जल्द इस तरह आहिस्ता आहिस्ता (जहन्नुम में) ले जाएंगें कि उन्हें ख़बर भी न होगी ।
وَأُمْلِى لَهُمْ إِنَّ كَيْدِى مَتِينٌ
और मैं उन्हें (दुनिया में) ढील दूंगा बेशक मेरी तद्बीर (पुख्ता और) मज़बूत है ।
أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا۟ مَا بِصَاحِبِهِم مِّن جِنَّةٍ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ مُّبِينٌ
क्या उन लोगों ने इतना भी ख्याल न किया कि आख़िर उनके रफीक़ (मोहम्मद ) को कुछ जुनून तो नहीं वह तो बस खुल्लम खुल्ला (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाले हैं ।
أَوَلَمْ يَنظُرُوا۟ فِى مَلَكُوتِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن شَىْءٍ وَأَنْ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ قَدِ ٱقْتَرَبَ أَجَلُهُمْ فَبِأَىِّ حَدِيثٍۭ بَعْدَهُۥ يُؤْمِنُونَ
क्या उन लोगों ने आसमान व ज़मीन की हुकूमत और ख़ुदा की पैदा की हुई चीज़ों में ग़ौर नहीं किया और न इस बात में कि यायद उनकी मौत क़रीब आ गई हो फिर इतना समझाने के बाद (भला) किस बात पर ईमान लाएंगें ।
مَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَلَا هَادِىَ لَهُۥ وَيَذَرُهُمْ فِى طُغْيَٰنِهِمْ يَعْمَهُونَ
जिसे ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे फिर उसका कोई राहबर नहीं और उन्हीं की सरकशी (व शरारत) में छोड़ देगा कि सरगरदॉ रहें ।
( 7 : 180 से 186 )
* तेरे पालनहार की पकड़ बडी सख्त है ?
فَمَا لَهُۥ مِن قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ
तो (उस दिन) उसका न कुछ ज़ोर चलेगा और न कोई मददगार होगा ।
( 86 : 10 )
फिर भी अकड़ ?
أَوَلَمْ يَرَ ٱلْإِنسَٰنُ أَنَّا خَلَقْنَٰهُ مِن نُّطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُّبِينٌ
अर्थात : - क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील गंदे पानी ( वीर्य ) से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है ! ( 36 :77 )
خُلِقَ ٱلْإِنسَٰنُ مِنْ عَجَلٍ سَأُو۟رِيكُمْ ءَايَٰتِى فَلَا تَسْتَعْجِلُونِ
अर्थात : - आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कुदरत की निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (द्दूम) न मचाओ ! ( 21 : 37 )
* आप नबी पूरी दुनिया के लिए ?
* उस वक़्त के दौर में और जाहिलो में पाक पालनहार का मानव जाति पर उप्पकर हुआ कि उसने अपने प्यारे नबी -ए - अख्रुजमामोहम्मद मुस्तफा ( सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम )को पूरी दुनिया के लिए रहमत बना कर भेजा ( अल्हम्दुलिल्लाह )
* अर्थात : - निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे ! ( 3 :164 )
* अर्थात : - (तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है ! ( 3 : 159 )
* आप बहुत ही नर्म दिल के और बहुत नर्म मिजाज के थे । ( सुब्हानअल्लाह )
* अर्थात : - (ऐ रसूल) हमने तुमको तमाम (दुनिया के) लोगों के लिए (नेकों को बेहश्त की) खुशखबरी देने वाला और (बन्दों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते । ( 34 : 28 )
* अर्थात : - ऐ अहले किताब तुम्हारे पास हमारा पैगम्बर (मोहम्मद सल्ल) आ चुका जो किताबे ख़ुदा की उन बातों में से जिन्हें तुम छुपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुतेरी से (अमदन) दरगुज़र करेगा तुम्हरे पास तो ख़ुदा की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कुरान) आ चुकी है ! ( 5 : 15 )
* पहले दौरे जाहिलियत से भरी पड़ी थी , अल्हम्दुलिल्लाह अल्लाह ने नबी के जरिये से पूरी दुनिया मे उजाला कर दिया ।
* उसके आगे आपकी मर्जी ?
أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُۥ بَل لَّا يُؤْمِنُونَ
या वे कहते है, "उसने उस (क़ुरआन) को स्वयं ही कह लिया है?" नहीं, बल्कि वे ईमान नहीं लाते । ( 52 : 33 )
فَلْيَأْتُوا۟ بِحَدِيثٍ مِّثْلِهِۦٓ إِن كَانُوا۟ صَٰدِقِينَ
अच्छा यदि वे सच्चे है तो उन्हें उस जैसी वाणी ले आनी चाहिए ।
( 52 : 34 )
أَمْ خُلِقُوا۟ مِنْ غَيْرِ شَىْءٍ أَمْ هُمُ ٱلْخَٰلِقُونَ
या वे बिना किसी चीज़ के पैदा हो गए? या वे स्वयं ही अपने स्रष्टाँ है ?
( 52 : 35 )
أَمْ خَلَقُوا۟ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ بَل لَّا يُوقِنُونَ
या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया? ( 52 : 36 )
* अब भी वक़्त है समल जाओ ।
فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا فِطْرَتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِى فَطَرَ ٱلنَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ
لِخَلْقِ ٱللَّهِ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
अतः एक ओर का होकर अपने रुख़ को 'दीन' (धर्म) की ओर जमा दो, अल्लाह की उस प्रकृति का अनुसरण करो जिसपर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनाई हुई संरचना बदली नहीं जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं।
( 30 : 30 )
مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَٱتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَلَا تَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
उसकी ओर रुजू करनेवाले (प्रवृत्त होनेवाले) रहो। और उसका डर रखो और नमाज़ का आयोजन करो और (अल्लाह का) साझी ठहरानेवालों में से न होना ( 30 : 31 )
مَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُۥ وَمَنْ عَمِلَ صَٰلِحًا فَلِأَنفُسِهِمْ يَمْهَدُونَ
जिस किसी ने इनकार किया तो उसका इनकार उसी के लिए घातक सिद्ध होगा, और जिन लोगों ने अच्छा कर्म किया वे अपने ही लिए आराम का साधन जुटा रहे है । ( 30 : 44 )
لِيَجْزِىَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِن فَضْلِهِۦٓ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلْكَٰفِرِين
ताकि वह अपने उदार अनुग्रह से उन लोगों को बदला दे जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। निश्चय ही वह इनकार करनेवालों को पसन्द नहीं करता। ( 30 :45 )
बूतपरस्ती (मूर्ति पूजा )
( सुरह 10 :18 )
(सूरह 10 : 28 ,29 ,30 )
( सूरह 7 : 191 से 198 )
( सूरह 22 : 12 ,73 , )
( सूरह 25 : 3 )
( सूरह 29 : 41 ,42 ,43 ,44 )
( सुरह 35 : 41 )
अत्ति महवपूर्ण
( सूरह 46 : 5 ,6 ,7 )
فَمَا لَهُۥ مِن قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ
तो (उस दिन) उसका न कुछ ज़ोर चलेगा और न कोई मददगार होगा । ( 86 :10 )
* नही तो उसके बाद आपकी मर्जी समझदारों के लिए काफी है ।
*आत्मा, परमात्मा और प्रकुति के चक्र में फसे है वो लोग वो जानना चाहते है जिसका इल्म उन्हें दिया ही नही गया है, वो लोग खुद भी गुमराह है और औरो को भी गुमराह कर रहे है।जबी पता है कि दुनिया मे अमल के लिये पैदा किया गया है। सिर्फ और सिर्फ के exam के लिए भेजा गया है केवल ।
1. एक अल्लाह(पालनहार) की उपासना करना, उसके सात किसी को भागीदारी ना करना ।
2.अपनी ना-जायज़ इच्छाओं को उसकी आज्ञासे छोड़ देना।।
3. Prophet(PBUH) को सच्चा नबी मान कर उन की शरीयत पे चलने की कोशिश करना।।
4. इन ही के आधार पर सत्य और असत्य का फल मिलेंगा।उस पालनहार ने मानव को उतना ज्ञान प्रदान किया है जितनी उसको उसकी आवशकता है नाकि पूरा। सही और गलत में फर्क समझा दिया गया है। उसके आधार पर जिंदगी गुजार करनी है।
* मेरे प्यारे भाइयो पालनहार अपने बन्दों का बुरा नही चाहता परन्तु मनुष्य ही खाइये में गिरा जा रहा है ।
और वो इंसाफ करने वाला है ।
* आत्मा , परमात्म ,और प्रकुति का चक्र
* हक़ क़ुरआन लौहे महफूज में है । (85:21,22)
* बेशक़ क़ुरआन फैसले की बात है ।
( 86:13,14) ( 15 : 1 से 15 )
* बेशक़ क़ुरआन सीधा रास्ता देखता है । ( 15:9 )
*وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِلَّ قَوْمًۢا بَعْدَ إِذْ هَدَىٰهُمْ حَتَّىٰ يُبَيِّنَ لَهُم مَّا يَتَّقُونَ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌ
अर्थात :- अल्लाह की ये शान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेशक अल्लाह उन्हें गुमराह कर दे हत्ता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेशक ख़ुदा हर चीज़ से (वाक़िफ है ) ( 9 :15 )
* हम ने ( अल्लाह ) उनकी जबान में ही कई नबी भेजे । ( 14 : 4 )
* हक़ बात( इस्लाम ) कोई जबरदस्ति नही। (2-256).
*पालनहार आज्ञा देता है नेकी का और बेहयाई को नापसंद करता है। (16:90).
*नसीहत उनके लिए सीधे मार्ग पर चलना चाहे।
(81:27,28,29)(40:28)
* ये मानव तुम लोग पालनहार(अल्लाह) के मोहताज हो और अल्लाह बे-नियाज़ है(सर्वशक्तिमान) है नसीहत वो मानते है जो अक्ल वाले है (13:19).
* और हरगिज अल्लाह को बे-खबर ना जानना जालिमो के काम से उन्हें ढील नही दे राहा है, मगर ऐसे दिन के लिए जिसमे आंखे खुली की खुली राह जांयेंगी।(14:42)
*कोई आदमी वह है, की अल्लाह के बारे में झगड़ाता है, ना तो कोई इल्म, ना कोई दलील और ना तो कोई रोशन निशानी।
(22:8)(31:20)(52:33,34)(23:72)(23:73).
*कह दो,"सत्य आ गया और असत्य मिट
गया, असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है। (17:81)
Note:- या अल्लाह लिखने में बयान करने में कोई शरियन गलती हुई हो ,तो मेरे मालिक तू दिलो के राज जानने वाला है माफ फ़रमा दे।(आमीन)
* अल्लाह से दुआ है , की हक़ को मानने , और समझने की तौफीक आता फरमाए , ज़ुबान पर हक़ बोलने की ताकत दे , और उसे ज्यादा उस चीज पर अमल करने की तौफीक दे , या अल्लाह दुनिया मे रख ईमान पर , और मरते वक़त कलम ए हक़ आत फ़रमा । (अमीन )
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