मस्जिद
* सभी मित्रों के लिए एक मजेदार लेख !
* आज कल मूर्खता का स्थर इतना बढ़ गया है , जिसको देखो वो अपनी मंदबुद्धि का प्रदर्शन करता नजर आ रहा है । मुझे तो हंसी आती है ऐसी बाते सुनकर ।
1 . प्रशन : - कहते है कि क़ुरआन में और इस्लाम मे कहा है मस्जिद बनाना ?
2 .अरब में , अफ्रीका में , चीन में और भारत इत्यादि में क़ुरआन क्यों पृथक पृथक है ?
* उत्तर : - दिमाग को शांत रख के और थोड़ा कान साफ करके ध्यान पूर्वक सुने ।
क्या सत्य है और क्या असत्य @ 😊
* और वेदों में भी देखेंगे कि मूर्ति और मंदिर
मस्जिद
* मस्जिद का अर्थ ?
* इबादतगाह = उपासना स्थान
* वहा क्या किया जाता हैं ?
* इनके पहले वाले लेख में मैन पूरा वर्णन कर दिया है कि इस्लाम 1400 वर्षों से या कब से उसके लिए यहां देख सकते है !
* अब आते है मुद्दे पर , एक पालनहार की उपासना और स्रुति की जगह को मस्जिद कहते है ।
* जहा पर छोटा ,बड़ा , काला , गोरा ,छुत अछूत ( इन लोगो की मान्यता के हिसाब से ),अमीर , गरीब , सब एक साथ कंधे से कंधे मिलाकर अपने सच्चे पालनहार के सामने झुकते है ।
* कब ये भी प्रश्न उठता है कि कितने टाइम और किसी तरह पढे क्योंकी पूरी दुनिया के सवालो का ठेका हमने ले रखा है । 😊 उसके लिए 👉👉 यहा देखे !@
* क्योंकि पालनहार की नजर में सब एक जैसे है , पर उसके नज़दिक वह प्रिय है जो तक़वा इख्तियार करे और बुरे कामो से परेज करे ।
* मस्जिद का मक़सद सबको समानता और एकता संदेश देना और एक अल्लाह
( पालनहार ) इबादत करना है ।
बरहाल अब देखते है मस्जिद का वर्णन ?
يْسَ الْبِرَّ أَن تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلَٰكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا ۖ وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ ۗ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا ۖ وَأُولَٰئِكَ
هُمُ الْمُتَّقُونَ -
अर्थात : - नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और ग़ुलाम (के गुलू खलासी) में सर्फ करे और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है।
( 2 : 17 )
* पालनहार ने हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दुसरे नबियों की अपेक्षा 7 इनाम अधिक दिए है ,जिस में से एक यह है कि पूरी ( भु ) जामिन को ही मस्जिद बना डाला
कोई भी कही पर नमाज अदा कर सकता है ।
* परन्तु मस्जिद का मकशद एक झुट करना है , भेद भाव का फर्क मिटाना है ।
और आप नबी ने भी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर जोर दिया है ।
* और मस्जिदों को बैतुल्लाह भी कहा जाता है इस माने में की उसकी इबादत की जाती है नाकि उसका जाती घर वो हर चीज से पाक है , घर से धन से इत्यादि से ।
سُبْحَٰنَ ٱلَّذِىٓ أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِۦ لَيْلًا مِّنَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ إِلَى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْأَقْصَا ٱلَّذِى بَٰرَكْنَا حَوْلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنْ ءَايَٰتِنَآ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ
क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है ।
( 17 : 1 )
* यहां पर दो मस्जिदों का वर्णन है ।
1 . मस्जिद ए हराम
जो कि मक्का में है ।
2 . मस्जिद ए अक़्सा
जो कि मौजूदा फिलिस्तीन में है ।
* जब आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का से मदीना मुनव्वर तशरीफ लाये तो सब पहले मस्जिद की तामीर की और आप का हुजरे मुबारक भी मस्जिद के बेहद करीब था ।
* और कई आयते है मस्जिदो के ऊपर और बेशुमार हदीसे मोजूद है मस्जिद की तामीर की फजीलत के ऊपर ।
*हज़रत अबु हुरैरा रिजिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है,की उन्होंने फ़रमाया की एक देहाती( गॉंव में रहेने वाला) खड़ा होकर मस्जिद में पेशाब करने लगा तो लोगो ने उसे पकड़ना चाहा (सहाबा इकराम) नबी पाक (सल्लाल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया की उसे छोड़ दो और उसके पेशाब पर पानी से भरा हु एक डोला उसके ऊपर से बहा दो ,क्योंकि तुम ( इंशानो को ) लोगो को आसानी के लिए पैदा किये गए हो, तुम हे सख्ती के लिये नही भेजा गया है।
(सही बुखारी 220)
* एक दूसरी रिवायत में है कि रसूल अल्लाह (सल्लाल्लाहु अलैही वसल्लम) फिर उसे थोड़ी देर के बाद बुलाया और आपने कहा मस्जिद ( इबादतगाँह) अल्लाह की याद के लिये और नमाज़ के लिए बनाई जाती है, इसमे पेशाब नही करनी चाहिए । इस तरीके से उस गाँव मे रहने वाले व्यक्ति पर रसूलल्लाह (सल्लाल्लाहु अलैही वसल्लम) बात का बहुत असर हुआ और वह मुसलमान हो गया।
पर लगता है इतना काफी होगा समझदारों के लिए । इससे सरल शब्दों में भी नही समझेगा तो मैं कुछ नही कर सकता ।
مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَن يَعْمُرُوا۟ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ شَٰهِدِينَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِم بِٱلْكُفْرِ أُو۟لَٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَٰلُهُمْ وَفِى ٱلنَّارِ هُمْ خَٰلِدُونَ
अर्थात : - मुशरेकीन का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ़्र का ख़ुद इक़रार करते है तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेशा जहन्नुम में रहेंगे । ( 9 : 17 )
إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا ٱللَّهَ فَعَسَىٰٓ أُو۟لَٰٓئِكَ أَن يَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُهْتَدِينَ
अर्थात : - ख़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरो तो अनक़रीब यही लोग हिदायत याफ्ता लोगों मे से हो जाऎंगे । ( 9 : 18 )
ٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعْدِ مِيثَٰقِهِۦ وَيَقْطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَٰسِرُونَ
जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन (ताल्लुक़ात) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं, यही लोग घाटा उठाने वाले हैं ।
( 2 : 27 )
كَيْفَ تَكْفُرُونَ بِٱللَّهِ وَكُنتُمْ أَمْوَٰتًا فَأَحْيَٰكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُون
अर्थात : - (अफसोस) क्यों कर तुम खुदा का इन्कार कर सकते हो हालाँकि तुम (माओं के पेट में) बेजान थे तो उसी ने तुमको ज़िन्दा किया फिर वही तुमको मार डालेगा, फिर वही तुमको (दोबारा क़यामत में) ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाओगे
( 2 : 28 )
وَإِذْ قَالَ إِبْرَٰهِۦمُ رَبِّ ٱجْعَلْ هَٰذَا بَلَدًا ءَامِنًا وَٱرْزُقْ أَهْلَهُۥ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ مَنْ ءَامَنَ مِنْهُم بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُۥ قَلِيلًا ثُمَّ أَضْطَرُّهُۥٓ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلنَّارِ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ
और (ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना, और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह के फल खाने को दें खुदा ने फरमाया (अच्छा मगर) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ (उन चीज़ो से) फायदा उठाने दूँगा फिर (आख़ेरत में) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है !
( 2 :126 )
وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَٰهِۦمُ ٱلْقَوَاعِدَ مِنَ ٱلْبَيْتِ وَإِسْمَٰعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّآ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
और (वह वक्त याद दिलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे (और दुआ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी (ये ख़िदमत) कुबूल कर बेशक तू ही (दूआ का) सुनने वाला (और उसका) जानने वाला है ।
( 2 : 127 )
لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ ٱلنَّاسِ عَدَٰوَةً لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱلْيَهُودَ وَٱلَّذِينَ أَشْرَكُوا۟ وَلَتَجِدَنَّ أَقْرَبَهُم مَّوَدَّةً لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّا نَصَٰرَىٰ ذَٰلِكَ بِأَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيسِينَ
وَرُهْبَانًا وَأَنَّهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ
अर्थात : -तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालो के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते । ( 5 : 82 )
2 . अब रही दूसरा प्रश्न की बात ।
* आज कल एक प्रशन ज्यादा चर्चा में है कि अल्लाह ने सब किताबो में अगल अगल क्यों
लिखा है ? क्या अल्लाह का ज्ञान अधूरा है ?
( माजल्लाह )
* उत्तर : - अल्लाह के कलाम में किसी किताब से किसी किताब का अफजल होनो का हरगिज यह मतलब नही , की अल्लाह की कीताब कम या ज्यादा है , उसमे कोई कमी थी। क्यों कि पालनहार एक है और उसका कलाम भी एक है । और उसकी कोई किताब में कमी नही । क़ुरआन के अलावा अक्सर बाते उनके मानने वालों ने बदल कर दीं है । क़ुरआन वाहिद है जो मफूज है । अल्हम्दुलिल्लाह । पूरी की पूरी एक एक शब्द सही सलामत । अल्हम्दुलिल्लाह अलबत्ता क़ुरआन का पढ़ना सवाब मेंं ज्यादा है ।
1 शब्द के बदले 10 नेकी ।
* अर्थात : - ऐ अहले किताब तुम्हारे पास हमारा पैगम्बर (मोहम्मद सल्ल) आ चुका जो किताबे ख़ुदा की उन बातों में से जिन्हें तुम छुपाया करते थे बहुतेरी तो साफ़ साफ़ बयान कर देगा और बहुतेरी से (अमदन) दरगुज़र करेगा तुम्हरे पास तो ख़ुदा की तरफ़ से एक (चमकता हुआ) नूर और साफ़ साफ़ बयान करने वाली किताब (कुरान) आ चुकी है
( 5 : 15 )
* क्यों कि यहुदी कुछ आपने मतलब का बताते थे कुछ छुपा देते थे ।
* आज कल एक और भी है जो अपने आपको किताबी कहने लगा है , उनका दावा है कि कुछ भी निकाल सकते है ।
* मेरे मित्रो आप ही समझ जाये कि जो निकल सकते है वो डाल भी सकते हों इसी तरह किताबो में मिलावट करते थे ।
* अल्लाह के कलाम से छेड कानी नही की जाती इसलिए क़ुरआन एक एकता किताब है जो जैसी की वैसी है । अल्हम्दुलिल्लाह , दुनिया मे सबसे ज्यादा कोई याद करने वाली कोई किताब है वो क़ुरआन है । एक अनुमान एक मुताबिक हर साल 2 करोड़ लोग क़ुरआन को याद करते है वो भी मुह जबानी ।
* हक़ क़ुरआन लौहे महफूज में है ।(85:21,22)
* बेशक़ क़ुरआन फैसले की बात है ।
( 86:13,14) ( 15 : 1 से 15 )
* बेशक़ क़ुरआन सीधा रास्ता देखता है ।
( 15:9 )
*وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِلَّ قَوْمًۢا بَعْدَ إِذْ هَدَىٰهُمْ حَتَّىٰ يُبَيِّنَ لَهُم مَّا يَتَّقُونَ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌ
अर्थात :- अल्लाह की ये शान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेशक अल्लाह उन्हें गुमराह कर दे हत्ता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेशक ख़ुदा हर चीज़ से (वाक़िफ है) ( 9 :15 )
* हम ने ( अल्लाह ) उनकी जबान में ही कई नबी भेजे । ( 14 : 4 )
* अब जो तुम्हारा दावा है कि क़ुरआन पृथक पृथक है , जो कि एक सडयंत्र रच है तुम लोगो ने 😊
* अरे भाई वो 350 - 400 आयते
कम ज्याद है उसकी लिस्ट बना कर भेज देना की हम भी जरा प्रमाण चेक कर लेंगे की आपकी बातो में कितना सत्य भरा है ।
😊😊😊😊😊😊😊
* अब देखते है कि वेदों में और इत्यादि धार्मिक पुस्तकों में मूर्ति पूजा और मंदिर है ????????
* " न तस्य प्रतिमाss अस्ति .....!
अर्थात : - ( न ) नही उत्पन्न हुआ इस प्रकार यह ईश्वर ( अल्लाह ) उपासना योग्य है ।
( तस्य ) उस अल्लाह की कोई
(प्रतिमा) प्रतिमा नही कोई मूर्ति नही ।
( न , अस्ति )
नही । ( यजुर्वेद 32 : 3 )
* एक ईश्वर की उपासना करने वालो को सुखों की प्रप्ति होति है ।
( यजुर्वेद 32 : 13 )
* वो लोग अंधकार में है जो पेड़ , पौधे , जड़ , पत्थऱ ,मूर्ति इत्यादि की पूजा , उपासना करते है ।
भावार्थ : - जो लोग ईश्वर के स्थान पे जड़ इत्यादि को पूजते है उन्हें घोर दुख की प्रप्ति होती है । ( यजुर्वेद 40 : 9 )
( यजुर्वेद 40 :12)
* यहा तो मन्दिर वाला पूरा मसला ही हल हो गया हिंदूइस्म ना तो कोई मंदिर ना कोई मूर्ति
तो मेरे प्रिय बंधुओ आओ इस्लाम मे मस्जिद कहा ये तो मैन बता दिया , पर आपके यहाँ तो कुछ भी नही आओ मिल के मस्जिद का पुर्ननिर्माण करते है , और दुनिया को भाईचारा का संदेश देते है ।
* हक़ बोलने में नही डरूंगा एक बार क़ुरान की ये आयते भी चेक करे ।
( सुरह 10 :18 )
(सूरह 10 : 28 ,29 ,30 )
( सूरह 7 : 191 से 198 )
( सूरह 22 : 12 ,73 , )
( सूरह 25 : 3 )
( सूरह 29 : 41 ,42 ,43 ,44 )
( सुरह 35 : 41 )
अत्ति महवपूर्ण
( सूरह 46 : 5 ,6 ,7 )
فَمَا لَهُۥ مِن قُوَّةٍ وَلَا نَاصِرٍ
तो (उस दिन) उसका न कुछ ज़ोर चलेगा और न कोई मददगार होगा । ( 86 :10 )
* आओ मिलकर मस्जिदे को आ बाद करते है , और एक पालनहार की इबादत और भक्ति करते है और दुनिया मे अमन और शांति का संदेश देते है ।
उसके बाद आपकी मर्ज़ी
😊😊😊😊😊😊
* जिसके घर शीशे के होते है ओ दूसरे के घरों पर पत्थर नही मारा करते ?
* सत्य कड़वा है पर ग्रहण करना पड़ेगा ।
*वह जिसने मौत और जिंदगी पैदा की ताकि तुम्हारी जांच (परीक्षा) हो कि तुम में अच्छा काम कौन करता है, और वही है इज्जत वाला बख्शीश वाला।( 67:2)
*हर जान को मौत का मज़ा चकना है,और हम(अल्लाह)अच्छी और बुरी परिस्तिथि में दाल कर मानव की परीक्षा लेता है अंत मे तुम्हे मेरे(अल्लाह) पास ही आना है।{क़ुरआन(21:35)& (32:11)
* हक़ बात( इस्लाम ) कोई जबरदस्ति नही(2-256).
*पालनहार आज्ञा देता है नेकी का और बेहयाई को नापसंद करता है।(16:90).
*नसीहत उनके लिए सीधे मार्ग पर चलना चाहे।(81:27,28,29)(40:28)
* ये मानव तुम लोग पालनहार(अल्लाह) के मोहताज हो और अल्लाह बे-नियाज़ है(सर्वशक्तिमान) है नसीहत वो मानते है जो अक्ल वाले है (13:19).
* और हरगिज अल्लाह को बे-खबर ना जानना जालिमो के काम से उन्हें ढील नही दे राहा है, मगर ऐसे दिन के लिए जिसमे आंखे खुली की खुली राह जांयेंगी।(14:42)
*कोई आदमी वह है, की अल्लाह के बारे में झगड़ाता है, ना तो कोई इल्म, ना कोई दलील और ना तो कोई रोशन निशानी।(22:8)(31:20)(52:33,34)(23:72)(23:73).
*कह दो,"सत्य आ गया और असत्य मिट गया, असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है।(17:81)
Note:- या अल्लाह लिखने में बयान करने में कोई शरियन गलती हुई हो , मेरे मालिक तू दिलो के राज जानने वाला है माफ फ़रमा दे।(आमीन)
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