5 नमाज़ का हुक्म
* खास करके उन नॉन मुस्लिम भाइयो
के लिए जो कहते है , की क़ुरआन मजीद
में कहा लिखा है 5 टाइम की नमाज़ के
बारे मे ।
* कभी - कभी तो सोच कर हंसी आती है , की वैसे तो मैं सख्त जुबान का आदि नही हु परंतु मजबूर हु ये कथन बोलने में जिन्हें पेशाब करने का तरीका नही जानते , खाने - पीने- रहने -उठाने - बैठने का तरीका नही आता वो लोग क़ुरआन ए करीम के ऊपर नुक़्ता चीनी चालू। कर देते है ।
* बरहाल कोई मसला नही इस्लाम
विरोधीयो को कोई न कोई मुद्दा चाहिए
* अल्हम्दुलिल्लाह जवाब तो मैं दूंगा ही इन्शाल्लाह , परंतु मुझे ये बात बताये की जवाब मिलने पर आप लोग नमाज़ कब से पढ़ना चालू करेंगे !
* NOTE : - तो गौर से पढ़ाओ और समझो अगर तो भी ना समझ पाओ तो मैं उसमे कुछ नही कर सकता ।
* अगर जो व्यक्ति 2 + 2 = 5 बोले तो उसको समझना केवल समय को व्यर्थ नष्ट करना है । 😊
* ये जो भी मैं समझाने का प्रयत्न
करने जा रहा हूँ वो केवल अक्ल रखने वालो के लिए है । बाकी आप लोग खुद समझदार हो ।
* अर्थात : - वह जो अपने पालनहार के ऊपर बे - देखे ईमान लाये और नमाज कायम रखे और हमारी दी रोजी में से हमारी राह में खर्च करे ।
( सूरह 2 : 3 )
भावर्थ : - हमारी राह का अर्थ गरीबो को , मिस्कीनो को , यतीमो को , इत्यदि । और नमाज कायम करे ।
* अर्थात : - निसंदेह ( बेशक़ ) नमाज अपने वक़्त पर फर्ज है एक पालनहार के ऊपर विश्र्वास रखने वालो के लिए।
( सुरह 4 : 103 )
अब ये प्रश्न उठता है कि नमाज कितने समय पढ़े ?
* फज्र = सूर्य उदय से कुछ समय पूर्व । जिसको हम आम भाषा सूबह कहते है ।
* जोहर = जब सूर्य जब दिन में जोश मरे ।
जिसको हम आम भाषा दोपहर कहते है।
* असर = सूर्ययस्थ होने से पूर्व को ।
जिसको हम आम भाषा सूर्य ढलने में कुछ समय बाकी है कहते है ।
* मगरिब = सूर्ययस्थ के पछताप ।
जिसको हम आम भाषा शाम कहते है।
* ईशा = रात्रि का समय ।
* अर्थात : - अतः अब अल्लाह की तस्बीह करो , जबकि शाम हो और जब सुबह करो ।
भावार्थ : - इस आयात ए पाक में मगरिब और ईशा । ( सूरह 30 :17 )
* अर्थात : - और उसी के लिए प्रशंसा है ,
आकाश और धरती में पिछले पहर और
जब तुम पर दोपहर हो ।
* भावार्थ : - इस आयत ए पाक में
जोहर का बयान है । ( सुरह 30 : 18 )
* अर्थात : - और नमाज कायम रखो दिन के दोनों किनारों और कुछ रात के हस्सो में बेशक़ नकिया बुराइयों को मिटा देती है । ये नसीहत है , नसीहत मानने वालों के लिए ।
भावार्थ : - यहाँ पर दिन के दोनों किनारों का मतलब जोहर और असर जवाल के बाद दिन का हस्सा मतलब दोपहर चालू हो जाती है , और असर दिन का किनारा है ।
और रात से मुराद ईशा और तहज्जुद है ।
( सूरह 11 : 114 )
* अर्थात : - नमाज कायम रखो सूरज ढलने से रात की अन्धेरी तक और सुबह का क़ुरआन बेशक सुबह के क़ुरआन में फरिश्ते हाजिर होते है ।
* भावार्थ : - यहाँ पर मगरिब का जिक्र
है । और सुबह के क़ुरआन पढ़े के समय फरिश्ते हाजिर होते है ।
* अर्थात : - तो उनकी बातो पर सब्र करो
और अपने रब को सराहते हुए उसकी पाकी बोलो सूरज चमक ने से पहले औरडूबने से पहले और रात के घड़ियों में उसकी पाकी बोलो और दिन के किनारों पर , इस उमीद पर की तुम राजी हो ।
भावार्थ : - फज्र
जोहर
असर
मगरिब
ईशा
( सूरह 20 : - 130 )
* अब रही मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज पढ़ने का हुक्म ।
* अर्थात : - और नमाज कायम रखो और जकात दो और रूकुअ करने वालो के साथ रूकुअ करो ।
भावार्थ : - रुकुअ यानी सब साथ झुको ( जमाअत कायम करो )
( सूरह 2 : 43 ) & ( सूरह 22 : 77 )
* अब रही नमाज किस तरीके से नमाज पढे ?
* नमाज का हर तरीका हदीसो से साबित है उसमे से कोई भी एक तरीके को अपना ले और अब नमाज पढ़ना चालू कर दे !
* मेरे प्रिय नॉन मुस्लिम जिनको नमाज जानने का सोक था तो मैंने बात दिया अल्हम्दुलिल्लाह अब नमाज पढ़ना कब से चालू कर रहे हो ।
* हक़ बात( इस्लाम ) कोई जबरदस्ति नही।(2-256).
*पालनहार आज्ञा देता है नेकी का और बेहयाई को नापसंद करता है।(16:90).
*नसीहत उनके लिए सीधे मार्ग पर चलना चाहे।
(81:27,28,29)(40:28)
* ये मानव तुम लोग पालनहार(अल्लाह) के मोहताज हो और अल्लाह बे-नियाज़ है(सर्वशक्तिमान) है नसीहत वो मानते है जो अक्ल वाले है (13:19).
* और हरगिज अल्लाह को बे-खबर ना जानना जालिमो के काम से उन्हें ढील नही दे राहा है, मगर ऐसे दिन के लिए जिसमे आंखे खुली की खुली राह जांयेंगी।(14:42)
*कोई आदमी वह है, की अल्लाह के बारे में झगड़ाता है, ना तो कोई इल्म, ना कोई दलील और ना तो कोई रोशन निशानी।
(22:8)(31:20)(52:33,34)(23:72)(23:73).
*कह दो,"सत्य आ गया और असत्य मिट
गया, असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है।
(17:81)
Note:- या अल्लाह लिखने में
बयान करने में कोई शरियन गलती हुई हो ,तो मेरे मालिक तू दिलो के राज जानने वाला है माफ फ़रमा दे।(आमीन)
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