14 समुल्लास
पोल - खोल 1 ( B ) अब देखते है इस बारे में वैदिक मान्यता क्या है ।
बाबा जी की पुस्तक है
1. हे ईशवर ! के ज्ञान चाहने वाला
मनुष्यों !
2 . हे मनुष्यों ! जो विद्वानों को बुलाने
वाला पूजा करने योग्य ईश्वर हम लोगोंं को सत्य उपदेश करे और से हमात उवद्रर करे । ( यजुर्वेद 17 : 62 )
3 . हे प्रजा ! के स्वमी ईश्वर ।
( यजुर्वेद 10 : 20 )
4 . हे परमेश्वर ! आप इतना जीवन मुझ में धरिये जिसके के आप केे आप सब को समाधि करे वाले है । ( यजुर्वेद 10 : 25 )
NOTE : -" हे " शब्दों को ध्यान में रखिये
* आर्य समाजी के लोगो का ऐसा कहते है , की यह वेद ईश्वरी वाणी है परंतु वचनों से विदित होता है । कि
" हे परमेश्वर " ऐसा न कहता ।
" मैं परमेश्वर " ऐसा कहता ।
यदि मनुष्यों शिक्षा करता है , की तुम ऐसा कहो तो भी ठीक नही ।
* क्योंकि इस से पाप का आरंभ भी वैदिक ईश्वर के नाम दूषित हो जायेगा ।
* जो वह क्षमा और दया करने वाला है।
" हे ईश्वर आप दुंखो : से मुक्तिदाता है और कभी - कभी किसी को नही सताते ।
अथर्वेद ( 4 : 1 : 7 )
* तो उसने अपनी सृष्टि में मनुष्यों के सूखार्थ जो युद्ध में हाथी , घोड़े , ऊंट , पशु मरण होते है , तो क्या ? वे प्राणी अनपराधी और ईश्वर के बनाये हुई नही है ?
अथर्वेद ( 4 : 1 : 7 )
* तो उसने अपनी सृष्टि में मनुष्यों के सूखार्थ जो युद्ध में हाथी , घोड़े , ऊंट , पशु मरण होते है , तो क्या ? वे प्राणी अनपराधी और ईश्वर के बनाये हुई नही है ?
* और यह भी कहना है , की वैदिक ईश्वर के नाम पर अच्छी बताओ का आरंभ बुरी बताओ का नही । इस कथान में गोल - माल है ।
*काट डाल, चिर डाल, फाड् डाल, जला दे,फुंक दे,भस्म कर दे।(अथर्वेद 12:5:62)
*तुम करके बांध लिए गए, कुचल गए, अनिष्ट चिन्तक को आग में जला डाल(अथर्वेद12:5:61)
* (वेदविरोधी) उन लोगो को काट डाल, उसकी खाल उतार दे,उसके मांस के टुकडो को बोटी-बोटी कर दे,उसके नसों को एठ दे,उसकी हड्डियों को मसल डाल उसकी मिंग निकाल दे,उसके सब अडो (हस्सो) और जुडो को ढीला कर दे(अथर्वेद 12:5:7) जो आज -कल हो रहा है, लोगो के साथ इंडिया में ex. मुसलमान के साथ हर जगह मार जा रहे है। तो भी मुसलमान आतंकवादी है (अफसोस कि बात है) हमारे दलित,ईसाइयो , etc साथ हो रहा है।
*अब जो मांस का सेवन करते है उनके साथ क्या करे उसके बारे में!
* मांसभक्षक अग्नि इसको पृथ्वी (जमीन) से निकाल देवे और जला डाले वायु(हवा)बड़े विस्तार अंतरिक्ष(वैसा ही कर यानी निकाल डाल)सूर्य प्रकाश से ढकेल देवे और गिरकर जला डाल।(अर्थवेद12:5:73)
*मांस खानेवाले को कारागार(जेल) में बंद कर दे।(अथर्वेद 8:3:2)
*है सूर्य और चांद तुम दोनों राक्षसों (मांसभक्षी को और वैदिक धर्म ना मानने वालों को राक्षस कहा जाता है) तपाओ दबाओ हे बलिस्ट तुम दोनों अंधकार बढ़ाने वालों को(मूर्ख जो वेदों को नही जानते या मानते) कुचल डालो, जला दो और खाऊ जनों को मारो ढकेलो ढील डालो(दुर्बल कर दो)(अथर्वेद 8:4:1)
*अब दूसरे देश या अनार्य लोगो को वहां लूट -मार और दुर्लभ व्यवहार करे ।
*यह वज्र सत्य धर्म (वैदिक धर्म) की तुर्ति करे , इस शत्रु की राज्य की(उसकी सल्तनत) नाश करके उसके जीवन को नाश कर देवे(वहां अच्छी शिक्षा है)उसकी गले की नाडियो को काटे और गुददी नाड़ियो को तोड़ डाले।(अथर्वेद6:135:1)
* उचे लोगो से नीचे-नीचे और गुप्त होकर जमीन से कभी न ऊठे और दंड से मार डाला गया पढ़ा रहे।(अथर्वेद6:135:2)
*हिंसको को मार डाल औऱ गिरा दे,जैसे वायु पैड को (NOTE:- )गौ, घोड़ा और पुरूष को मत छोड़ो(या तो इसका एक मतलब है,की मार डालो या फिर गुलाम बनालो)है हिंसा शील(मजलूम को हिंसक कहा जा रहा बल्कि खुद हिंसा कर रहे है।)यहां से लौट कर प्रजा की हानि के लिए जगह दे (अथर्वेद10:1:17)
*कहते है, की लौहे की बनी तलवार घर है(अथर्वेद10:1:20)
*तेरी गिरवा की निडियो और दोनो पैरो को भी मैं काटूँगा निकल जा।(सब को निकाल दो ,तुम लोग रहो).(अथर्वेद 10:1:12)
*पीछे को चढाये गए दोनों भुजाओ को(हाथों)और मुख(मुँह) में बांधता हु।(अथर्वेद 7:17:4'5)
*में उस शत्रु को उसके घर से निकलता हु, जो शत्रु सेना चढ़ता है(यानी जो इनके मुक़ाबिल आता है तो घर से निकाल कर मर देंगे)प्रतापी राजा(लीडर)उसको अपने निविहन ग्रहा व्यवहार से गिराये।( अथर्वेद6:75:1)
*मांसभक्ष को मूल सहित भस्म कर दो।(अथर्वेद 8:3:18)
NOTE* हे विद्वन आपके अनार्य देशो(जो अनार्य देश नही है)में बसने वालो मे गांव से नही दुग्ध आदि को दुहते।(जो गौ दूध नही देती)दिनको नही तापते है(जो वेदों से अपरिचित है) वे क्या करते वह करे आप हम लोगो के लिए जो कुलीन मुझ को प्रप्त होता है,उसके धनोको सब प्रकार से धारण करे(पकड़ना-उसके माल को आसान शब्दों में लूट लेना वाह क्या बात है)और ये क्षेषट धन से युक्त आप हम लोगों के नीचे शक्ति जिसमे उसकी नितृति करो।(यानी गुलाम बनाओ)👌बोहत खूब(ऋग्वेदा 3:53:14)
*सत्यार्थ प्रकाश में दयानद सस्वती यही बात करते है।
*इस व्यवस्था को कभी न तोड़े की जो-जो युद्ध मे जिस-जिस भृत्य( सैनिक)वा अध्यक्ष ने रथ, घोड़ा, हाथी,छत्र, धन,धान्य, गाय, आदि पशु और NOTE स्त्रीया(लेडिस)तथा अन्य प्रकार के सब द्रव्य और घी .......... इत्यादि युद्ध मे जाते उस-उस को ग्रहण करे (यानी लूट लो) यही बात मनुसमूर्ति में कई जगह पर लिखी है।*तो क्या स्त्रीयो के साथ नियोग के नाम पर बलत्कार करें।(वाह भाई वाह)क्या बात है(6 समुलास पेज नम्बर126) इसके आगे लिखा है कि किसको कितना हिसा मिलना चाहिए।👍
*और ऋग्वेदादीभाष्यभूमिक में लिखा है कि युद्ध ही एक मात्र धन प्रप्ति का जरिया हैं इसी लिए उसे निघण्टु कहा जाता है(यानी महाधन का जरिया)😊दूसरों को लूटो धन जमा करो और ये बात मनुसमूर्ति में भी है।(22-10 राजप्रजाधर्मविषय पेज नम्बर 285)
*(और मुगलों को लुटेरा बोलते है बल्कि यही यही पैदा होय और यही उनकी क़बर है। और अपना इतिहास भूल गए विदेशोंयो बोहत खूब)*एक आर्य समाज वाले एक व्यक्ति के मेरी बात चीत में उसने खुद कहा है,की वेदों से कि इन्शान में क़ुर्द्ध आती है (यानी आतंक की भावना आती है☺️👍
* ईस्वर आज्ञा देता है कि सब मनुष्यों को वैदिक बनाओ। (यजुर्वेद 2:1) बोहत अछि जर्बदस्त है।😊
*और भी बोहत बाते है ये चंद पेश किया है नही तो वेद ऐसी चीजों से भार-पढ़ा है।
* जो यही इसका पुर्वाक्त अर्थ है तो बुरा काम का आरंभ भी वैदिक ईश्वर के नाम पर आर्यो करते है ।
* और वैदिक ईश्वर दयालु भी न रहेगा क्योंकि उसकी की दया उन युद्ध मे मारे जाने वाले पशुओं और युद्ध मे उनकी ओरोतो को विधवा और उनके बच्चो को अनाथ करने की आज्ञा नही देता। ।
* और वैदिक ईश्वर दयालु भी न रहेगा क्योंकि उसकी की दया उन युद्ध मे मारे जाने वाले पशुओं और युद्ध मे उनकी ओरोतो को विधवा और उनके बच्चो को अनाथ करने की आज्ञा नही देता। ।
* और ये सब आज कल चालू ही इंडिया में कही और भी मर काट कर रहे है। वैदिक बरहाल ये मुझे बताने की कोई आवश्यकता नही है आप ही भली भांति जाने है।
* आर्य (कट्टर हिंदूइस्म ) लोग इस का अर्थ नही जनते तो वेदों को पढ़ना पढना व्यर्थ है , यदि आर्य लोग इसका का अर्थ और करते है , तो सुधा अर्थ क्या है ? इत्यादि ।
* और ऊपर जितने भी मंत्र है , इससे यह प्रतीत होता है की वेद ईश्वरी ज्ञान नही हो सकता ।
* इसका यह अर्थ है , की इन वेदों को किसी व्यक्ति ओ ने लिख कर लोगो में फैला दिया है ।
* बरहाल हमें उसे कोई गरज नही उनकी मान्यता उन्हें मुबारक ।
* इस तरह आज्ञा देता है मनुष्यों को ।
* कुल = तुम फ़रमा दो !
* या अय्यूहन्नास = ये लोगो !
* या- अय्यूहल -लाजिना- अमनु = ये एक
( एक अल्लाह ) पर विश्वास रखने वालों इत्यादि। ।
* और वेदों का ईश्वर मनुष्यों से उल्टा कोई चीज़े पूछता है ।
* तुमसे पृथ्वी परले अंत को पूछता हूं , पराक्रमी बलवान पुरूष के पराक्रम को पूछता हूँ , सब संसार के नाभि को पूछता हूँ , अवकाश को पूछता हु ।
( अथर्वेद 9 : 10 : 13 )
* इस मंत्र से प्रतीत होता है , की वैदिक ईश्वर सर्वज्ञ नही है , और हमे ऐसे वैदिक ईश्वर की कोई जरूरत नही । जो मनुष्यों से पूछता है ।
* मेरा केवल आर्य समाजी से एक सवाल की ( माह प्रलय ) कब आएंगी ?
* इन्शाल्लाह 2 प्रशन का उत्तर जल्दी देने की कोशिश करूंगा ।
धन्यवाद
( अल्हम्दुलिल्लाह )
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