सोच के भी हंसी आती है ।
क्या क़ुरान की पृथ्वी चपटी है ?
एक और नई बात ! मेरे नॉन मुस्लिम और मुस्लिम भाईयो के लिए एक लेख !
*आज - काल बहुत से लोग या कह लेजिए अति विद्धवान लोग जो अपनी बेवकूफि का जोहर दिखाने में लगे है , मुझे तो कभी-कभी सोच आती है या कह लेजिये की हंसी आतीं है। ऐसी बाते सुनकर।
*आज कल एक और नई बात लाई गई है ,इस्लाम विरोधी के जरिये जो खाली बेवकूफी से कम नही लगती बरहाल इस्लाम विरोधियो को कोई न कोई मुद्दा तो चाहिए।
* और वो बेवकूफी वाली बात ये है क़ुरआन मजीद फुरकान हामिद में ये लिखा है , की पृथ्वी चपटी है। ऐसी बात सुनकर हंसी न आये तो क्या आये ।
बरहाल इसका स्पष्टीकरण करने ही कोशिश करूंगा ( इन्शाल्लाह ) और वेदों से भी कुछ तो मुझे दिखाना ही होगा ! अगर इस बात से किसी व्यक्तिको कोई भी एतराज हो खुद प्रमाण चेक कर।
*आज - काल बहुत से लोग या कह लेजिए अति विद्धवान लोग जो अपनी बेवकूफि का जोहर दिखाने में लगे है , मुझे तो कभी-कभी सोच आती है या कह लेजिये की हंसी आतीं है। ऐसी बाते सुनकर।
*आज कल एक और नई बात लाई गई है ,इस्लाम विरोधी के जरिये जो खाली बेवकूफी से कम नही लगती बरहाल इस्लाम विरोधियो को कोई न कोई मुद्दा तो चाहिए।
* और वो बेवकूफी वाली बात ये है क़ुरआन मजीद फुरकान हामिद में ये लिखा है , की पृथ्वी चपटी है। ऐसी बात सुनकर हंसी न आये तो क्या आये ।
बरहाल इसका स्पष्टीकरण करने ही कोशिश करूंगा ( इन्शाल्लाह ) और वेदों से भी कुछ तो मुझे दिखाना ही होगा ! अगर इस बात से किसी व्यक्तिको कोई भी एतराज हो खुद प्रमाण चेक कर।
* अब ये देखेंगे की क़ुरआन में पृथ्वी को चपटी बताई गई है ?
* हिंदी और संस्कृत में ( भु )के लिए धरती, जमीन,पृथ्वी इत्यादि शब्दो का प्रयोग किया जाता है।
* उदहारण ०"पीवरिन उदवपति ततः"अर्थात :- सब पद्धार्थ को भुगाणे का हेतु स्थूल पृथ्वी को उखड़ते है, उसको तुम भी शिद्ध करो।(यहाँ पर खेती के बारे में बताया गया है।) यहाँ जो शब्द का प्रयोग किया गया है । वो जमीन के किये उपयोग में लाया गया है।
( यजुर्वेद 12:71)और इसी तरह
(यजुर्वेद के 14:10, 12:69) में भी मिल जाइयेगा।
* अरबी भाष में धरती, जमीन और पृथ्वी ,हमारा ग्रह जिसमे हम रहते है।सब के लिए । एक शब्द है वो।
(अल-अर्ध) Al'ARD
* उसका परिक्षण करेंगे !
अल-क़ुरआन ( सूरह 2:164)
* ये केवल समझदारों के लिए उदहारण है।
* 1. अल-अर्ध वो ग्रह(पृथ्वी) के लिए है।
* 2. अल- अर्ध वो (भु , जमीन ,धरती) के लिए है।
* 3. अल-अर्ध वो ग्रह(पृथ्वी) के लिए है।
* अब ये देखेंगे की क़ुरआन में पृथ्वी को चपटी बताई गई है ?
* हिंदी और संस्कृत में ( भु )के लिए धरती, जमीन,पृथ्वी इत्यादि शब्दो का प्रयोग किया जाता है।
* उदहारण ०"पीवरिन उदवपति ततः"अर्थात :- सब पद्धार्थ को भुगाणे का हेतु स्थूल पृथ्वी को उखड़ते है, उसको तुम भी शिद्ध करो।(यहाँ पर खेती के बारे में बताया गया है।) यहाँ जो शब्द का प्रयोग किया गया है । वो जमीन के किये उपयोग में लाया गया है।
( यजुर्वेद 12:71)और इसी तरह
(यजुर्वेद के 14:10, 12:69) में भी मिल जाइयेगा।
* अरबी भाष में धरती, जमीन और पृथ्वी ,हमारा ग्रह जिसमे हम रहते है।सब के लिए । एक शब्द है वो।
(अल-अर्ध) Al'ARD
* उसका परिक्षण करेंगे !
अल-क़ुरआन ( सूरह 2:164)
* ये केवल समझदारों के लिए उदहारण है।
* 1. अल-अर्ध वो ग्रह(पृथ्वी) के लिए है।
* 2. अल- अर्ध वो (भु , जमीन ,धरती) के लिए है।
* 3. अल-अर्ध वो ग्रह(पृथ्वी) के लिए है।
* इसी तरह से ये आयात में भी जमीन के बारे में बताया गया है।
*फर्श का मायना :- मानव और इसमें रहे वाले सब जीव जंतु के जमीन को नर्म करदी है, जिसमे से साग, सब्जी, इत्यादि की खेती होती है, चलना फिरना आसान किया है।
* जिस तरीके के से हम अपने पैरो के जरिये चले है वैसे हम कभी भी पानी या इत्यादि जगहों पर नही चला सकते इसीलिए यहा पर धरती को फर्श की तरह बिछाया है।
(मतलब फैलाया है) जिसका उदहारण ०
* इंडिया, इत्यादि देशो का वर्ग किलोमीटर फैला है । आदि।
* फर्श से ये मुराद है।
* अब देखते है , की पृथ्वी का आकार कैसे है।
* अब यहा पर दो शब्द है एक (अल-अर्ध ) और दोसरा दाहा-हाआ ।
* 1. आप समझ ही गये होंगे। यहा पर पृथ्वी के बारे में बोला जा रहा है।
* 2.दाहा-हाआ जिसका अर्थ है अंडाकार।
* 1972 में पहली पृथ्वी की पहली इमेज मंजरे आम पर आई जिसमे पूर्ण तह पता चला कि पृथ्वी का आकार गोल नही बल्कि अंडाकार है।
* क़ुरआन में इसके मुताबिक ये भी आयत मौजूद है। (सूरह 31:29)(सूरह 39:5) समझदारों के लिए निशानी बताई गई है।
(सुब्हान अल्लाह) इतने डिटेल में और कही नही मिल सकता आपको । इसे कहते है ईश्वरीय ज्ञान जो कि क़ुरआन केवल। (अल्हम्दुलिल्लाह)
* अब देखते है , की आकाश गंगा (गलेक्सि) में ग्रहों की हालत ।
* वही है जिसने रात दिन बनाया और सूर्य ,चंद्र भी । प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहे है।( सुरह 21:33)
* यह तैर से मुराद घूमना , हरकत करना।
आकाशगंगा का फैलाव इस आयत में मिल जायेगा।(सूरह 51:7)
* अगर आपको अधिक आकाश गंगा के बारे में जानना चाहते हो तो मेरा वो वाला लेख पढ़ें।(एक नजर इधर भी) यहाँ देखे @ और भी सभी प्रकार का ज्ञान -विज्ञान क़ुरआन में मौजूद है जहाँ तक वज्ञानिक भी तक पहुचे नही। अगर आपको और भी ज्ञान - के बारे में जानकारी चाहिए तो मुझे कमेंट में बता दे।
* इसी तरह से ये आयात में भी जमीन के बारे में बताया गया है।
*फर्श का मायना :- मानव और इसमें रहे वाले सब जीव जंतु के जमीन को नर्म करदी है, जिसमे से साग, सब्जी, इत्यादि की खेती होती है, चलना फिरना आसान किया है।
* जिस तरीके के से हम अपने पैरो के जरिये चले है वैसे हम कभी भी पानी या इत्यादि जगहों पर नही चला सकते इसीलिए यहा पर धरती को फर्श की तरह बिछाया है।
(मतलब फैलाया है) जिसका उदहारण ०
* इंडिया, इत्यादि देशो का वर्ग किलोमीटर फैला है । आदि।
* फर्श से ये मुराद है।
* अब देखते है , की पृथ्वी का आकार कैसे है।
* अब यहा पर दो शब्द है एक (अल-अर्ध ) और दोसरा दाहा-हाआ ।
* 1. आप समझ ही गये होंगे। यहा पर पृथ्वी के बारे में बोला जा रहा है।
* 2.दाहा-हाआ जिसका अर्थ है अंडाकार।
* 1972 में पहली पृथ्वी की पहली इमेज मंजरे आम पर आई जिसमे पूर्ण तह पता चला कि पृथ्वी का आकार गोल नही बल्कि अंडाकार है।
* क़ुरआन में इसके मुताबिक ये भी आयत मौजूद है। (सूरह 31:29)(सूरह 39:5) समझदारों के लिए निशानी बताई गई है।
(सुब्हान अल्लाह) इतने डिटेल में और कही नही मिल सकता आपको । इसे कहते है ईश्वरीय ज्ञान जो कि क़ुरआन केवल। (अल्हम्दुलिल्लाह)
* अब देखते है , की आकाश गंगा (गलेक्सि) में ग्रहों की हालत ।
* वही है जिसने रात दिन बनाया और सूर्य ,चंद्र भी । प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहे है।( सुरह 21:33)
* यह तैर से मुराद घूमना , हरकत करना।
आकाशगंगा का फैलाव इस आयत में मिल जायेगा।(सूरह 51:7)
* अगर आपको अधिक आकाश गंगा के बारे में जानना चाहते हो तो मेरा वो वाला लेख पढ़ें।(एक नजर इधर भी) यहाँ देखे @ और भी सभी प्रकार का ज्ञान -विज्ञान क़ुरआन में मौजूद है जहाँ तक वज्ञानिक भी तक पहुचे नही। अगर आपको और भी ज्ञान - के बारे में जानकारी चाहिए तो मुझे कमेंट में बता दे।
* अब देख ते है , की वेदों में इन बारे क्या लिखा है।
* सूर्य लोक ठहरा हुआ है, पृथ्वी ठहरा हुआ है,यह सब जगत ठहरा हुआ है, सब पर्वत विश्रामस्थान में ठहरा हुआ है,घोड़ों को स्थान में मैन खड़ा कर दिया है।
(मतलब जैसे किसी घोड़ो को किसी स्थान में बंद देते है वैसे ही रोक दिया है।)
( अथर्वेद 6:77:1 )
* जिसमे भूमि, अंतरिक्ष और आकाश दृढ स्थापित है। (अथर्वेद 10:7:12)
* यजुर्वेद( 32:6 , 1:21 , )
* अब देख ते है , की वेदों में इन बारे क्या लिखा है।
* सूर्य लोक ठहरा हुआ है, पृथ्वी ठहरा हुआ है,यह सब जगत ठहरा हुआ है, सब पर्वत विश्रामस्थान में ठहरा हुआ है,घोड़ों को स्थान में मैन खड़ा कर दिया है।
(मतलब जैसे किसी घोड़ो को किसी स्थान में बंद देते है वैसे ही रोक दिया है।)
( अथर्वेद 6:77:1 )
* जिसमे भूमि, अंतरिक्ष और आकाश दृढ स्थापित है। (अथर्वेद 10:7:12)
* यजुर्वेद( 32:6 , 1:21 , )
अथर्वेद(13:1:6) में भी यही बाते लिखी है।
* सूर्य आदि लोको को रच कर और उसने सबको डोरी लगाकर बांद दिया है।
(अथर्वेद 4:1:4 )
अगर डोरी छोड़ दोंगे तो सब भाग जाएंगे क्या ?
* हे मनुष्य ! जो तेरा मन NOTE:-( चारो दिशाओं में भ्रंश वाली पृथ्वी पर)
( मतलब चार कोनो वाली पृथ्वी पर) दूर तक जाता है।( ऋग्विद 10:58:3)
* इस मंत्र में पृथ्वी को 4 कोनो वाली बताई गई है ।
अथर्वेद(13:1:6) में भी यही बाते लिखी है।
* सूर्य आदि लोको को रच कर और उसने सबको डोरी लगाकर बांद दिया है।
(अथर्वेद 4:1:4 )
अगर डोरी छोड़ दोंगे तो सब भाग जाएंगे क्या ?
* हे मनुष्य ! जो तेरा मन NOTE:-( चारो दिशाओं में भ्रंश वाली पृथ्वी पर)
( मतलब चार कोनो वाली पृथ्वी पर) दूर तक जाता है।( ऋग्विद 10:58:3)
* इस मंत्र में पृथ्वी को 4 कोनो वाली बताई गई है ।
* और इससे भी बढ़कर दयानन्द सस्वती ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के 8 समुलास में लिखा है । है। कि उनसे प्रशन किया लगा कि सूर्य , चन्द्र इत्यादि में मनुष्य रहते है । उत्तर है : - हा वो भी वेदों के साथ ।
* क्या मजाक है। सूर्य का तापमान 5500 डिग्री हो तो है। वहाँ तक अभी तक कोई यान तक नही गया तो मानव जीवन तो ना-मुमकिन है। और रही चंद्र की बात तो मनुष्य वहाँ जा चुके है। यह बाते शिर्फ़ कॉमिक बुक में अच्छी लगती है।
* इससे मिलती जुलती बात वेद में भी है ।
* क्या मजाक है। सूर्य का तापमान 5500 डिग्री हो तो है। वहाँ तक अभी तक कोई यान तक नही गया तो मानव जीवन तो ना-मुमकिन है। और रही चंद्र की बात तो मनुष्य वहाँ जा चुके है। यह बाते शिर्फ़ कॉमिक बुक में अच्छी लगती है।
* इससे मिलती जुलती बात वेद में भी है ।
(" वसुनाम जनानाम देवम राध:") अर्थात :- पृथिवि आदि वसुओं और मनुष्यो का अभिसित धनरूप है, उस अग्नि को तुम लोग उपयोग में लाओ। (वसुओं का मतलब बसने की जगह)
(" वसुनाम जनानाम देवम राध:") अर्थात :- पृथिवि आदि वसुओं और मनुष्यो का अभिसित धनरूप है, उस अग्नि को तुम लोग उपयोग में लाओ। (वसुओं का मतलब बसने की जगह)
* और भी बहोत बाते है वेदों में ये तो चंद है। बरहाल मैं क़ुरआन में जो इसके बारे था समझा ने की कोशिश की है या (अल्लाह) अगर बयान करने कोई गलती हुई हो तो तू दिलो के राज जानने वाला है माफ फ़रमा।(अमीन)
* ये लिख किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि इस्लाम विरोधियों को जवाब देना है। जो वो लोग क़ुरआन पर टिप्पणी करते है और खुद अपने धार्मिक गर्न्थो के बारे में कुछ नही जानते।
धन्यवाद
* और भी बहोत बाते है वेदों में ये तो चंद है। बरहाल मैं क़ुरआन में जो इसके बारे था समझा ने की कोशिश की है या (अल्लाह) अगर बयान करने कोई गलती हुई हो तो तू दिलो के राज जानने वाला है माफ फ़रमा।(अमीन)
* ये लिख किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही बल्कि इस्लाम विरोधियों को जवाब देना है। जो वो लोग क़ुरआन पर टिप्पणी करते है और खुद अपने धार्मिक गर्न्थो के बारे में कुछ नही जानते।
धन्यवाद
6 comments
Click here for commentsGood luck. Thanks.
ReplyAlhamdulillah
ReplyMashallah
ReplyMasha Allah bhut sacchi bat h Allah sabhi ko sac Janne ki tofik de
Replyआमीन
ReplyGood Job Brooo 😊😊😊
ReplyLove You Form India🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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